महामहिम
राष्ट्रपति महोदय,
हिन्दुस्तान को
आज़ाद हुए 70 साल का समय हो
गया और ये बात हिन्दुस्तान हर बच्चा
जानता कि देश को आज़ाद कराने जितना योगदान हिन्दु भाईयों का था उतना ही मुसलमानों
का भी था. अगर एक तरफ़ मोहनदास कर्मचंद गांधी थे तो दूसरी तरफ़ सरहदी गांधी ख़ान
अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ॉं भी थे!
लेकिन जिस आज़ादी
और बेहतर ज़िन्दगी की उम्मीद में हमारे पुर्खों ने हिन्दुस्तान में रहने का फ़ैसला
लिया और किसी भी क़ीमत पर पाकिस्तान को नकार दिया! क्या उस दर्जे की आज़ादी और
बेहतर ज़िन्दगी हिन्दुस्तान के मुसलमानों को मिल रही है...???
आज अगर इस देश
में हमारी माँ बहनों की इज़्ज़त सरे बाज़ार रुसवा की जारी है तो इसका ज़िम्मेदार
कौन है..???
अगर आज गाय के
गोश्त के नाम पर भाई-बाप की बली चढ़ाई जा रही है तो इसका ज़िम्मेदार कौन है...???
क्या बीफ़ खाने की सज़ा क़त्ल और सामूहिक
बलात्कार है.???
आख़िर कौन से
"सबका साथ, सबका विकास"
की बात करती है हमारी केन्द्र सरकार... देश का राष्ट्रपति एक मूकदर्शक बनकर नहीं
रह सकता... आपको अपनी कुर्सी का मान रखना होगा और इन मामलों में गम्भीरता से
कार्यवाही करनी होगी...
ये दर्द
हिन्दुस्तान के हर मुसलमान के दिल का दर्द है जो आज मजबूरी में लिखना पड़ रहा
है... सरकार को ये बात समझनी होगी कि मुसलमान भी इसी हिन्दुस्तान की औलाद हैं...
और मुसलमानों पर हो रहा अत्याचार देश हित में किसी भी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता
है...
देश के प्रथम
नागरिक और सम्मानित राष्ट्रपति होने के नाते हम हिन्दुस्तान के मुसलमान आपसे अपील
करते है कि आप अपने पद कि गरिमा का मान रखते हुए हिन्दुस्तान के मुसलमानों को ये
यक़ीन दिलायें कि मुसलमान भी इस देश उतने ही महफ़ूज़ है जितने कि हिन्दु भाई हैं!
अभिव्यक्ति की
स्वतन्त्रता राजनैतिक स्वतन्त्रता के लिए भी नितान्त ज़रूरी है । जिस समाज में
स्वतन्त्रतापूर्वक विचारों की अभिव्यक्ति न हो सके, उस समाज पर अनैतिकता का शासन हो जाता है । वाक् एवं
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के आधार पर एक समाज स्वतन्त्र रूप से बस सकता है ।
प्रत्येक समाज के अपने कुछ नियम होते हैं जो समाज की निरंकुशता पर अंकुश लगाकर उसे
सुरक्षित भविष्य देते हैं
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