बालिका शिक्षा
जरूरी बताते हुए छात्र- छात्राओं को उच्च शिक्षा से जोड़ने का आह्वान किया है।
उन्होंने कहा है कि बच्चे मेहनत लगन के साथ लक्ष्य बनाकर आगे बढे़ं , जिससे देश समाज का विकास हो।
ऐसे लोगों की कमी
नहीं जो अपने समाज के सच्चे नायक हैं। अपनी और किसी ख़ासियत की वजह से नहीं बल्कि
देश और समाज के लिए किए गए अपने काम और अपने योगदान की बदौलत वो बन गए रियल हीरोज।
सामाजिक बुराईयां
व कुरीतियां देश और समाज को विघटन की और ले जाती है।R2 उन्होनें कहा कि आज की युवा पीढ़ी को
यह प्रण करना है कि वे
समाज में बढ़ती हुई नशाखोरी,कन्या भ्रूण
हत्या और देह व्यापार को जड़ से खत्म करके ही दम लेगें। नशा मनुष्य को शारीरिक व
आत्मिक तरीके से कमजोर कर देता है,इसलिए युवाओं को
चाहिए कि वह स्वयं भी नशे की गर्त से बचें तथा समाज को भी बचाएं।
छुटपन में जब नया
नया साइकिल चलाना सीखा था तब सोचता था, काश कुछ ऐसा हो जाए कि बस एक पैडल मारूं और साइकिल चलती ही चली जाए। जब बड़ा
हुआ तो पता चला कि साइकिल फ्रिक्शन के चलते तेज नहीं चलती। फिर दिमाग के घोड़े
दौड़े और इस नतीजे पर जा पहुंचे कि इसका समूल नाश करना बेहतर होगा। फिर एकदिन
फ्रिक्शन का फायदा समझ में आया। ब्रेक कमजोर होने के चलते साइकिल ठुक गई और पहिया
टेढ़ा हो गया।
मनुष्य का प्रधान
लक्षण है- स्वाभिमान ।। बल, धन, विद्या, सत्ता आदि सम्पदाओं का अहंकार करना बात दूसरी है, घमण्ड की निन्दा की गई है और उसे पतनकारी
दुष्प्रवृत्ति बताया गया है स्वाभिमान इससे सर्वथा भिन्न है ।। आत्म- गौरव एवं
आत्म- सम्मान आत्मा की भूख है ।। आत्मा महान् है उसकी महत्ता एवं श्रेष्ठता का
वारापार नहीं इसलिए उसे अपने गौरव के अनुरूप परिस्थितियों में ही रहना चाहिए ।। तिरस्कार
एवं अपमान की स्थिति उसके लिए न तो वांछनीय ही हो सकती है और न उपयुक्त ही ।।
तिरस्कृत रहते हुए भी यों जिन्दगी को जिया जा सकता है ।। अन्न मिलता रहे तो साँस
चलती रहेगी पर इससे आत्मिक महानता जीवित नहीं रह सकती उक्के लिए तो स्वाभिमान एवं
आत्म- गौरव की रक्षा करने वाली स्थिति ही चाहिए ।।
आत्म- गौरव को
सबसे अधिक ठेस पहुँचाने वाली और आत्मा को तत्काल नीचा दिखाने वाली वस्तु हैं-
भिक्षा ।। भिखारी तिनके से भी हत्का होता है उनका न कोई सम्मान रहता है और न मूल्य
।। हर व्यक्ति उसे ओछा, गया- गुजरा दीन-
दरिद्र एवं अपाहिज असमर्थ समझता है और उसके प्रति तिरस्कार एवं घृणा के भाव रखता
है ।। ऐसा सम्मान रहित व्यक्ति अपने आपकी दृष्टि में भी छोटा हो जाता है ।। हीनता
एवं दीनता उसकी नस- नस में भर जाती है ।। इन परिस्थितियों में पड़ा हुआ व्यक्ति
जीवित ही मृतक है ।।
भिक्षा माँगने का
अधिकार केवल दो प्रकार के व्यक्तियों को है एक उनको जो अपाहिज असमर्थ, अन्धे कोढ़ी अशक्त हैं ।। हाथ- पैर इस लायक नहीं
कि अपना पेट भरने लायक भी कमा सके ऐसे व्यक्ति को यदि उनके स्वजन सम्बन्धी जीवित
रखने लायक सुविधा नहीं देते तो जीवन धारण करने की विवशता में उन्हें भिक्षा माँगने
का अधिकार है ।।
देश का हर सचा
हिंदू या मुसलमान देश और समाज से ग़द्दारी बर्दाश्त नहीं करेगा। शर्त यह की देश का
क़ानून सब के लिए बराबर हो। समाज देश बनाता हे, सियासत नहीं।
समाज में
सकारात्मक वातावरण बनाने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है।
इसलिये पत्रकार
के पैरों में चक्कर, जबान में शक्कर,
नई खोज के प्रति
दिल में आग और दिमाग में बर्फ होनी चाहिए।
एक नागरिक होने
के नाते देश और समाज के प्रति हमारे कई दायित्व हैं, जिसका निर्वहन हर किसी को करना चाहिए। आप भी अपने दायित्व
को निभाएं और अपने समाज, शहर और देश के
वातावरण को खुशनुमा बनाएं। इसकी शुरुआत हर कोई अपने-अपने स्तर पर कर सकता है।
स्वतंत्रता पाने
के लिए उस वक्त हमारे बुजुर्गों ने अपना देश के प्रति अपना दायित्व निभाया,
जिसका बेहतर परिणाम आजादी के रूप में मिला,
आज हम सुकून से जीवन यापन कर रहे हैं, अब परतंत्रता की वो जंजीरें नहीं हैं, लेकिन शहरी विकास के लिए आज भी जरूरत है एेसे
युवाओं की, जो अपना दायित्व निभाए
महापुरूषों के
विचारों और जीवन दर्शन के अनुरूप चलकर देश एवं समाज के निर्माण में अहम योगदान दिया
जा सकता है।
No comments:
Post a Comment