Thursday, September 29, 2016

एक जिला कलेक्टर का पत्र बच्चों के माता-पिता के नाम

प्रिय अभिभावकगण,
कोटा शहर की ओर से मुझे आपके बच्चों का इस शिक्षा नगरी में स्वागत करने का अवसर मिला है। ये शहर इस देश के युवा मस्तिष्क को आधुनिक भारत का निर्माता बनाने में ऊर्जा देने का कार्य करता है। इस पत्र को आरम्‍भ करने से पूर्व मेरा अभिभावकों से निवेदन है कि वे इसे पर्याप्त समय देकर संयमपूर्वक पढ़ें, तथा उपयुक्त होगा कि अभिभावक अर्थात माता–पिता साथ साथ पढ़ें। प्रत्येक माता–पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा सफलता के उस मुकाम तक पहुँचे जहाँ कुछ लोग ही पहुँच पाते हैं। इसके लिए माता–पिता अपने बच्चे के मस्तिष्क में एक बीजारोपण करते हैं तथा उसका सही पोषण ही सफलता का आधार है।
माता-पिता के लिए ये अत्यन्‍त कठिन स्थिति होती है कि वे अपने बच्चे को ऐसी जगह छोड़ते हैं जहाँ वे स्वयं नहीं रहते। ये और भी मुश्किल तब हो जाता है जब बच्चे को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट और प्रतिबद्ध प्रयासों के लिए छोड़ा गया हो। जब माता – पिता बोर्ड/होर्डिंग/अखबारों में उन प्रतिभावान बच्चों के क्षेत्र को देखते हैं जो कि उन्होंने अपने बच्चों के लिए सोचा है तो उनका संकल्प अपने बच्चों को प्रेरित करने के लिए ओर मजबूत हो जाता है। एक अच्छी आर्थिक स्थिति और जीवन स्तर के लिए इंजिनियरिंग और चिकित्सा के क्षेत्र में अच्छा केरियर निश्चित रूप से हो सकता है, जब मैं ईमानदारी से सोचता हूँ तो यह एक बड़ा कारण है जो अभिभावकों को इंजिनियरिंग और चिकित्सा के क्षेत्र में अपने बच्चों का भविष्य देखने के लिए प्रेरित करता है। तथा सीमित संसाधनों और उच्च स्तरीय प्रतियोगिता को देखते हुए समय से आगे की सोचना गलत भी नहीं है।
राजस्‍थान के कोचिंग हब कोटा के जिला कलेक्टर ने कोटा में लगातार घट रही आत्‍महत्‍या की घटनाओं को ध्‍यान में रखते हुए एक जिम्‍मेदार प्रशासक के रूप में एक  खुला पत्र बच्‍चों के माता-पिता के नाम लिखा है। यह पत्र उन्‍होंने प्रेस में जारी किया है। पत्र में जिन मुद्दों की तरफ उन्‍होंने ध्‍यान खींचा है, उन पर केवल अभिभावक ही नहीं  शिक्षकों को भी विचार करना चाहिए।
हालाँकि मुझे लगता है कि हम सब इस बात से सहमत हैं कि दुनिया पिछले 15-20 सालों में इतनी बदल गई है कि जो सुविधाएँ और सेवाएँ कुछ सीमित लोगों के लिए उपलब्ध थीं, वे वर्तमान में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारी प्रगति के कारण अब सभी लोगों के लिए उपलब्ध हैं।
मनोरंजन पेशेवर खेल, साहित्य, स्वास्थ्य, पत्रकारिता, फोटोग्राफी, इवेंटमैनेजमेंट, संगीत, पर्यटन इत्यादि में बीते युग की तुलना भारी वृद्धि देखी गई है। बहुत से लोगों ने इन क्षेत्रों में नए मुकाम हासिल किए हैं जो न कि एक सफल केरियर विकल्प के रूप में सामने लाए बल्कि इन्होंने मनुष्य की रचनात्मक क्षमता को भी बढ़ाया है।खैर, मैं आपसे इसे एक बेहतर विकल्प के रूप में देखने के लिए नहीं कह रहा हूँ। परन्‍तु इसे भी एक विकल्प के रूप में देख सकते हैं। ये तथ्य की बात है कि आज युवा बच्चे अपने अकादमिक प्रदर्शन के सम्‍बन्‍ध में काफी दबाव का सामना कर रहे हैं, इसी वजह से इनमें से कई बच्चे तनाव के विभिन्न स्तरों से गुजरते हैं।
यदि हम सोचते हैं कि प्रतियोगिताओं की वजह से कुछ तनाव होता है तो माता-पिता का समर्थन देखभाल और परिवार का अच्छा वातावरण किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए बच्चों को सक्षम बनाता है। हालाँकि मौजूदा वास्तविकता ये है कि सही परिस्थिति और समर्थन की कमी की वजह से कई बच्चे आत्महत्या के निर्णय तक पहुँच जाते हैं।
मैंने अधिकतर लोगों को ऐसे कहते हुए सुना है कि बच्चों को ऐसी कई चीजें पसन्‍द नहीं होतीं जो उनके लिए अच्छी हैं। अब आपके मन में ये प्रश्न उठ सकता है कि क्‍या माता-पिता को बच्चों की अपरिपक्व इच्छाओं को मानना चाहिए। शायद आवश्यकता नहीं तो आइए, अब देखते हैं कि बच्चे किन चीजों का विरोध करते हैं शायद सही खाना, सही समय पर सोना, सही तरीके से बात करना, मर्यादित आचरण करना, सही देखना–सुनना आदि।
बच्चे वास्तव में माता–पिता का अनुगमन करते हैं न कि किसी भी चीज का अंधा अनुसरण। इसके अलावा एक बात निश्चित है कि बच्चे माता-पिता को देखते हैं एवं विचार करते हैं कि उन्हे जो सिखाया गया है क्या वह भी उसका पालन करते हैं? और क्या वें उन बातों का पालन करते हुए वास्तव में स्नेहहिल, शान्‍त एवं खुश हैं।
वे अपने माता-पिता की केवल उन्ही बातों को चुनते हैं जो उन्हें सुख और शांति प्रदान करती है। यदि आपने परिस्थितियों को खराब कर दिया है तो हो सकता है,आपकी संतान आपको नापसन्‍द करे।
यह काफी विचित्र और खिझाने वाली बात हो सकती है लेकिन ऐसी सम्‍भावना है कि आपकी संतान आपको नापसन्‍द करने लगे। इसके विभिन्न रूप हो सकते हैं पूर्णत: पसन्‍द न करना, आपकी कुछ आदतों को पसन्‍द न करना, किसी अन्य की तुलना में आपको कम पसन्‍द करना, आपकी अत्यधिक देखभाल एवं चिंता की भावना के लिए न पसन्‍द करना, जिसे आप प्यार समझ सकते है, परन्‍तु हो सकता है वह आपकी सन्‍तान के लिए अति हो आदि।
तो क्या इस पत्र का उद्देश्य आपको यह अहसास कराना है कि आपकी सन्‍तान आपको नापसन्‍द करती है।
जी नहीं… !आपका बच्चा आपको प्यार व पसन्‍द करता है… मैं केवल इस बिन्‍दु पर जोर देना चाहता हूँ कि हम अनजाने में कभी ऐसी स्थिति पैदा न कर दें या हालात पैदा न कर दें कि जो हमें फिर से सोचने पर मजबूर कर दे…..।
बच्चे माता-पिता की जिम्मेदारी हैं और हमें कोई अधिकार नहीं है कि हम अभिभावकों को उनकी जिम्मेदारियों का अहसास कराएँ, न ही हम ऐसा करना चाहते हैं। सभी अभिभावक, अपने बच्चों का भविष्य सुनहरा बनाना चाहते हैं किन्तु यहाँ यह विचारणीय है कि हमारे स्वप्न और ख्वाहिशें केवल मात्र हमारे अनुभवों तक ही सीमित हैं। सच्चाई ये भी है कि हम यह नहीं सोच सकते, या फिर अपने सपने में भी ये विचार नहीं कर सकते है कि हमारा बच्चा हमारी सोच से कई गुना ज्यादा भी प्राप्त कर सकता है। हम सभी समाज के विभिन्न वर्गो से आते हैं चाहे वह सामाजिक हो या आर्थिक, या फिर कोई धर्म, या कोई विचारधारा हो। किन्तु जहाँ तक पालन–पोषण का मूल सिद्धान्‍त है वह सभी के लिए समान रहता है।
मैं इस विषय का कोई ज्ञाता नहीं हूँ और न ही मुझे बच्चों के सही पालन पोषण के लिए कोई विशेष योग्यता प्राप्त है। मैं यह भी मानता हूँ कि हर बच्चा चूँकि अलग होता है इसलिए एक अलग प्रकार का पालन–पोषण चाहता है। मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया आप इन निम्न आधारभूत मौलिक बिन्‍दुओं की तरफ ध्यान आकर्षित करें ..।
अपने घर का वातावरण अपने बच्चे के लिए खुशनुमा, प्यारभरा एवं शांति प्रिय बनाएँ । ऐसे वातावरण में पला, बढ़ा बालक न केवल स्वयं शांतिप्रिय एवं संतुलित रहता है बल्कि किसी भी तनाव की स्थिति का सामना करने के लिए सक्षम रहता है।
घबराएँ नहीं..! आपका बच्चा पूरी तरह से सुरक्षित है आप चिन्‍ता नहीं करें। मैं किस विषय पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, मुझे विश्वास है कि पत्र में आगे पढ़ने पर आप स्वत: ही समझ जाएँगे।
मैं अपने आपको बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण व्यक्ति के रूप में मानता हूँ कि क्योंकि मुझे युवा प्रतिभाशाली सुन्‍दर और अद्भुत बच्चों के लगभग 20-25 आत्महत्या नोट पढ़ने को मिले।
क्या मैं इस तरह के बच्चों के लिए इतने सारे विशेषण दे रहा हूँ क्योंकि उन्होंने आत्महत्या कर ली थी ? मुझे क्षमा करें…! मेरा जवाब नहीं है…ये वास्तव में वैसे ही थे जैसा मैंने पहले कहा कि युवा, प्रतिभाशाली सुन्‍दर और अद्भुत बच्चे।
एक लड़की जिसने अपने पाँच पन्नों के अँग्रेजी के सुसाइड नोट में व्याकरण की एक गलती नहीं की एवं लेख भी अति सुन्‍दर था…कितनी प्रतिभावान! उसकी माँ ने उसकी परवरिश के लिए अपने कैरियर का त्याग किया उसके लिए उसने अपनी माँ को धन्यवाद दिया …। परन्‍तु यह बात उसे बार-बार चुभ रही थी।
एक अन्य लड़की चाहती थी कि उसकी दादी अगले जन्म में उसकी माता बने…उसकी इच्छा थी कि उसकी छोटी बहन वह सब करे जो वो चाहती है। न कि जो माता-पिता चाहते हैं..एक ने लिखा कि वह विज्ञान नहीं पढ़ना चाहती पर उससे करवाया गया…बहुतों ने कुछ लाइनों में लिखा कि अपने माता-पिता की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकते …कुछ ने लिखा कि वो सक्षम नहीं हैं वो सब करने जो उनसे कहा गया है…सभी ने यही सोचा की इस तनाव से ज्यादा शांतिदायक और प्रयासरहित तो मौत ही है। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है….!
जैसा कि एक हिमशैल की चोटी से हम उसकी गहराई का अन्‍दाजा नहीं लगा सकते वैसे ही आत्महत्या के मामले भले ही कम संख्या में दिखते हैं किन्‍तु वास्तविकता में इससे कहीं अधिक वे बच्चे हैं जो इस चरम कदम को तो नहीं उठाते किन्‍तु प्रदर्शन के दबाव की वजह से बहुत ज्यादा तनाव, चिन्‍ता से गुजर रहे हैं।
बहुत सारे माता-पिता इस आपदा के बाद ये विश्वास नहीं कर पाते कि उनके खुद के बच्चे हैं जिन्होंने इस तरह का कदम उठा लिया। मैं आगे किसी की भी भावनाओं को आहत नहीं करना चाहता किन्‍तु वास्तविकता यह है कि बच्चे को मानसिक रूप से किसी की तलाश थी, जैसे किसी डूबते हुए आदमी के लिए तिनके का सहारा और वो तिनके का सहारा सिर्फ आपका उस बच्चे के प्रयासों की प्रशंसा करना हो सकता था। आपको सांत्वना भरे शब्दों से उसे ये बताना होगा कि अपना श्रेष्ठ दे, परिणाम जो भी रहे आपका उसकी विशिष्ठता के लिए पूर्ण प्रशंसा करना आत्मविश्वास को बढ़ाता है लेकिन इसके बदले में बच्चों को उनके प्रदर्शन को लेकर भावनात्मक दबाव बनाया जाता है। उनके पड़ोसियों, रिश्तेदारों के बच्चों आदि से उनकी तुलना की जाती है। बच्चों के प्रदर्शन को सामाजिक प्रतिष्ठा की हानि या उपलब्धि से जोड़ दिया जाता है।
हमें ये समझने की आवश्यकता है कि आँकड़ों के अनुसार वे सभी बच्चे जो अकादमिक दबाव का सामना कर रहे हैं, की तुलना में आत्महत्या करने वाले बच्चों की संख्या कम हैं, लेकिन तुलनात्मक अध्ययन ये दर्शाता है कि उनकी आशाएँ एवं सपनों को कई बार आहत किया जाता है। अत: ये उचित समय है कि हम इस सन्‍दर्भ में थोड़ा विचार करें।
बच्चों की वास्तविक जरूरतों एवं क्षमताओं को पहचानने की महत्ती आवश्यकता है । इस विषय में भी दो चरम विचारधाराएँ हैं -1. बच्चे को आपके अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए उसकी सीमाओं से परे जाकर अथक प्रयास करवाने की या दूसरी अनावश्यक रूप से जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार की। पर अफसोस दोनों ही तरीके ही कारगर नहीं हो पाते।
हमारा ऐसा मानना है कि हमें हमेशा शिक्षक या उपदेशक का कार्य करने की बजाए बच्चों से भी कुछ सीखने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि प्राय: बच्चे हमें खुशी और शान्ति की राह ही दिखाते हैं।
बच्चों को अपने स्वयं के सरोकारों के साथ रहने दें यानि मेरा मत है कि बच्चों को प्रकृति या वातावरण के साथ जोड़ें और उनकी संवाद क्षमता को संवृद्धित करें । अगर उसका आकर्षण विपरित लिंग की ओर होता है तो ये स्वाभाविक रूप से बढ़ती उम्र का लक्षण है न कि विकृति। इस स्वाभाविक प्रक्रिया को रोकने का प्रयास न कर सही दिशा एवं सही आकार देते हुए अपनी दृष्टि उस पर बनाए रखें। अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत करिए।
उनको बार-बार अपने कार्य, हालात, समस्याएँ या फिर परेशानियों से अवगत न कराएँ। आपके जीवन का संघर्ष आपके बच्चे के लिए प्रेरणा बने न की बोझ। कहीं ऐसा न हो की बहुत देर हो जाए और आपके बच्चों के पास आपके साथ समय व्यतीत करने के लिए समय ही न बचे। प्रत्येक बच्चे की क्षमता की तुलना में उसके स्वयं के माता-पिता एक सीमा तक आदर्श बन सकते हैं। जबकि उस बच्चे की क्षमता अपने माता-पिता से ज्यादा अधिक है। ऐसी स्थिति में हमें उसकी पूर्ण क्षमता प्राप्त करने के लिए एक फेसिलेटर के रूप में प्रयास करने चाहिए। आखिर में मेरा आपसे यही निवेदन है कि अपना सपना साकार करवाने के लिए आप किसी भी हद तक जा सकते हैं या अपने बच्चे को अपनी पूर्ण क्षमता को हासिल करने के लिए, उसके सपनों को साकार करने के लिए सकरात्मक माहौल सृजित करना चाहते हैं।
सामूहिक परामर्श कार्यक्रम में ऐसे विषयों पर बात करने के लिए मुझे थोड़ी हिचकिचाहट इसलिए है कि प्राय: ऐसे कार्यक्रम में आप स्वयं से ज्यादा स्वयं के पड़ौसी या अन्य किसी व्यक्ति की बातों से प्रभावित होकर मूल विषय से परे हो जाते हैं। मेरे विचारों से भिन्न अभिप्राय रखना गलत नहीं है लेकिन यह आप अपनी शर्तों पर रखें तो बेहतर है न कि किसी ओर की।
अत: आपका मूल्यवान समय लेने के लिए आपका क्षमा प्रार्थी हूँ कि मैंने आपको बाल प्रबन्‍धन की ये बातें बताने की कोशिश की। जिसका मैं विशेषज्ञ नहीं हूँ। मेरे विचार कोटा में मिले अनुभव का सार है एवं निश्चित रूप से गुरुजनों की प्रेरणा से ही मैं ऐसा कर पाया हूँ ।
दुनिया के श्रेष्ठ माता-पिता बनिए…।
मुझे पूरा विश्वास है कि इसमें कोई स्पर्धा नहीं होगी…. 
डॉ. रवि कुमार
जिला कलेक्टर, कोटा,राजस्‍थान

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