Wednesday, September 28, 2016

कानूनों की जानकारी

अगर आप पत्रकार हैं या पत्रकार बनना चाहते हैं तो आपको निम्न कानूनों की जानकारी जरूर होनी चाहिए। पत्रकार के तौर पर काम करते वक्त डेस्क पर या रिपोर्टिंग के दौरान इन कानूनों से आपका रोज सामना होगा। कुछ महत्वपूर्ण कानून निम्न है-

1.कॉपीराइट या प्रतिलिप्याधिकार(बौद्धिक संपदा अधिकार)

किसी लेखक , चित्रकार अथवा अन्य किसी प्रकार की बौद्धिक रचना तैयार करने वाले बुद्धिजीवी या कलाकार का अपनी रचना पर अधिकार है । कॉपीराइट किसी व्यक्ति की रचना को अनाधिकृत रुप से प्रकाशित किए जाने या अन्य किसी रुप में प्रस्तुत किए जाने पर रोक लगाता है।
-निम्न प्रकार की कृतियों पर कॉपीराइट
1-मौलिक साहित्यिक , रंगमंचीय अथवा कलात्मक कृति पर कॉपीराइट
2-फिल्म पर कॉपीराइट
3-कंप्यूटर प्रोग्राम पर कॉपीराइट
4-गीत-संगीत तथा अन्य रिकार्ड पर कॉपीराइट
–  कॉपीराइट अधिनियम , 1957 के मुताबिक कॉपीराइट
1-कृति के रचनाकार का कविता, फोटोग्राफ, पेंटिंग आदि पर कॉपीराइट होगा।
2-अगर किसी पत्र-पत्रिका में रोजगार के दौरान कृति रची गयी है तो पत्र-पत्रिका के प्रकाशक को अपनी किसी पत्र-पत्रिका में रचना प्रकाशित करवाने का अधिकार है । शेष सभी अधिकार लेखक के होंगे ।
3-अगर कोई फोटोग्राफ /पेंटिंग/नक्काशी/ किसी व्यक्ति के भुगतान पर बनाई गयी हो तो भुगतान करने वाले को कॉपीराइट प्राप्त होगा।
4-सरकार के अंतर्गत किए गये किसी रचनात्मक कार्य का कॉपीराइट सरकार का होगा । अगर कृति किसी सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान ने बनाई या प्रकाशित की हो या किसी सरकारी प्रतिष्ठान के निर्देश पर तैयार की गयी है, तो कॉपीराइट उस संस्थान का माना जायेगा।

2. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम

– उपभोक्ता कौन है?
वस्तुओं या सेवाओं का उपभोग करता हो, और इन वस्तुओं या सेवाओं का मूल्य चुकाता हो या चु्काने का वादा करता हो या आधा चुकाता हो या आधा चुकाने का वादा करता हो।
– उपभोक्ता के अधिकार
1-जीवन एवं संपत्ति के लिए घातक पदार्थों या सेवाओं की बिक्री से बचाव का अधिकार ।
2-उपभोक्ता पदार्थों एवं सेवाओं का मूल्य , उनका स्तर , गुणवत्ता , शुद्धता , मात्रा व प्रभाव के संबंध में सूचना पाने का अधिकार ।
3-जहां भी संभव हो , प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उपभोक्ता पदर्थों एवं सेवाओं की उपलब्धि के भरोसे का अधिकार।
4-अपने पक्ष की सुनवाई का अधिकार व साथ ही इस आश्वासन का भी अधिकार कि सभी उपयुक्त मंचों पर उपभोक्त हितों को ध्यान में रखा जायेगा।
5-अनुचति व्यापार प्रक्रिया अथवा अनियंत्रित उपभोक्ता शोषण से संबंधित शिकायत की सुनवाई का अधिकार ।
6-उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
– उपभोक्ता संरक्षण कानून का विषय क्षेत्र
1-केंद्र सरकार द्वारा खास तौर से छोड़ी गई कुछ वस्तुओं और सेवाओं को छोड़कर , यह कानून सभी उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होता है ।
2-इस कानून के अंतर्गत – निजी , सरकारी और सहकारी सभी क्षेत्र आ जाते हैं ।
इस अधिकार का प्रयोग कब किया जाता है
जब किसी उपभोक्ता को लगे कि वस्तु या सेवा में कोई अनुचित या खराब है, जिसके कारण उसे हानि पहुंचती है । तब वह इस कानून का प्रयोग कर उचित उपभोक्ता फोरम में अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है ।
– उपभोक्ता अदालतों में शिकायत का अधिकार
1-उपभोक्ता शिकायत कर सकता है
2-उपभोक्तताओं की पंजीकृत स्वयंसेवी संस्थाएं शिकायत कर सकती हैं ।
3-केंद्र सरकार शिकायत कर सकती है ।
4-राज्य सरकार शिकायत कर सकती है ।
5-समान हित वाले उपभोक्ता-समूह की ओर से एक अथवा अनेक उपभोक्ता शिकायत कर सकते हैं ।
शिकायतें दूर करने की व्यवस्था

3. सूचना का अधिकार

सूचना के अधिकार के तहत भारत का कोई भी नागरिक, किसी भी लोक प्राधिकारी अथवा उसके नियंत्रणाधीन, किन्ही भी दस्तावेजों,अभिलेखों का निरीक्षण कर सकता है, इन अभिलेखों,दस्तावेजों की प्रामाणिक प्रति प्राप्त कर सकता है, जहां सूचना किसी कम्प्यूटर या अन्य युक्ति में भंडारित है, तो ऐसी सूचना को डिस्केट,टेप या वीडियो कैसेट के रूप में प्राप्त कर सकता है। साथ ही इस अधिकार के तहत सामग्री के प्रामाणिक नमूने लेने का भी प्रावधान है।
आरटीआई अधिनियम पूरे भारत में लागू है (जम्‍मू और कश्‍मीर राज्‍य के अलावा) जिसमें सरकार की अधिसूचना के तहत आने वाले सभी निकाय शामिल हैं जिसमें ऐसे गैर सरकारी संगठन भी शामिल है जिनका स्‍वामित्‍व, नियंत्रण अथवा आंशिक निधिकरण सरकार द्वारा किया गया है।
-सूचना के अधिकार कानून:
सूचना का अधिकार अधिनियम हर नागरिक को अधिकार देता है कि वह –
सरकार से कोई भी सवाल पूछ सके या कोई भी सूचना ले सके.
किसी भी सरकारी दस्तावेज़ की प्रमाणित प्रति ले सके.
किसी भी सरकारी दस्तावेज की जांच कर सके.
किसी भी सरकारी काम की जांच कर सके.
किसी भी सरकारी काम में इस्तेमाल सामिग्री का प्रमाणित नमूना ले सके.
सूचना अधिकार के दायरे में विभाग राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री दफ्तर संसद और विधानमंडल, चुनाव आयोग, सभी अदालते, तमाम सरकारी दफ्तर, सभी सरकारी बैंक, सारे सरकारी अस्पताल,पुलिस महकमा, सेना के तीनों अंग से सूचना ले सके

4. न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971

कोर्ट की कानूनी प्रक्रिया को अवरूद्ध करने का प्रयास व कोर्ट परिसर में इस प्रकार की हिंसा न्यायालय की अवमानना के दायरे में आती है।
अभिलेख न्यायालय का अर्थ
-न्यायालय की कार्यवाही तथा निर्णय को दूसरे न्यायालय मे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकेगा
– न्यायालय को अधिकार है कि वो अवमानना करने वाले व्यक्ति को दण्ड दे सके यह शक्ति अधीनस्थ न्यायालय को प्राप्त नही है इस शक्ति को नियमित करने हेतु संसद ने न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 पारित किया है अवमानना के दो भेद है
सिविल और आपराधिक।
जब कोई व्यक्ति आदेश निर्देश का पालन न करे या उल्लंघन करे तो यह सिविल अवमानना है परंतु यदि कोई व्यक्ति न्यायालय को बदनाम करे जजों को बदनाम तथा विवादित बताने का प्रयास करे तो यह आपराधिक अवमानना होगी जिसके लिए कारावास जुर्माना दोनों को देना पडेग़ा वही सिविल अवमानना में कारावास संभव नहीं है यह शक्ति भारत में काफी विवादस्पद है।
कोर्ट की अवमानना के लिए सजा का प्रावधान
न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 के अनुसार दोषी के लिए 151 दिन की जेल का प्रावधान है। जो छह महीने तक बढ़ाई भी जा सकती है। या फिर 2000 हजार रूपए की जुर्माना राशि अदा करनी पडती है। किसी-किसी मामले में दोषी को सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है।
-इसके अलावा कोर्ट की अवमानना के दोषी व्यक्ति को क्षमा याचना करने की छूट होती है। जिसके द्वारा वह इस आरोप से मुक्ति पा सकता है। इस क्षमा याचिका में कोर्ट की अवमानना के कारण की व्याख्या की जाती है। कोर्ट बिना किसी मजबूत आधार के इस याचिका को ठुकरा नहीं सकती।
-सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय किसी को भी इस सजा को बढाने का कोई विशेषाधिकार नहीं दिया गया है।
-कोर्ट की अवमानना के लिए यदि कोई कंपनी दोषी पाई जाती है तो सिविल अवमानना के दायरे में आती है। इस केस में सजा का हकदार वह व्यक्ति होगा, जिसके हाथ में उस वक्त कंपनी का चार्ज होगा। इस स्थिति में जो व्यक्ति केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद होगा उसे कस्टडी में रखा जाएगा। उक्त व्यक्ति को अपने बचाव में कार्य करने का पूरा मौका दि जाने का प्रावधान है। इस अधिनियम एक विशेष बात यह है कि यदि कोई व्यक्ति कुछ यथार्थ विषयों पर कोर्ट की आलोचना करता है तो उसे न्यायालय अवमानना की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इसके तहत हाइकोर्ट को अपनी सहायक अदालतों की अवमानना के मामले में सजा देने का अधिकार प्राप्त है। उसी प्रकार उच्च न्यायालय को समान न्यायिक प्रकिया अपनाते हुए सहायक अदालतों की अवमानना के मामले में फैसला देने का अधिकार प्राप्त है।

5. मानहानि

मानहानि क्या है?
किसी व्यक्ति, व्यापार, उत्पाद, समूह, सरकार, धर्म या राष्ट्र के प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाने वाला असत्य कथन मानहानि (Defamation) कहलाता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अनुसार-किसी के बारे में बुरी बातें बोलना, लोगों को अपमानजनक पत्र भेजना, किसी की प्रतिष्ठा गिराने वाली अफवाह फैलाना, अपमानजनक टिप्पणी प्रकाशित या प्रसारित करना। पति या पत्नी को छोड़कर किसी भी व्यक्ति से किसी और के बारे में कोई अपमानजनक बात कहना, अफवाह फैलाना या अपमानजनक टिप्पणी प्रकाशित करना मानहानि माना जा सकता है।
मानहानि के प्रकार
मृत व्यक्ति को कोई ऐसा लांछन लगाना जो उस व्यक्ति के जीवित रहने पर उसकी ख्याति को नुकसान पहुंचाता । और उसके परिवार या निकट संबंधियों की भावनाओं को चोट पहुंचाता ।
किसी कंपनी , संगठन या व्यक्तियों के समूह के बारे में भी ऊपर लिखित बात लागू होती है ।
किसी व्यक्ति पर व्यंग्य के रुप में कही गयी बातें ।
मानहानिकारक बात को छापना या बेचना ।
सच्ची टिप्पणी मानहानि नहीं
किसी व्यक्ति के बारे में अगर सच्ची टिप्पणी की गयी हो और वह सार्वजनिक हित में किसी लोक सेवक के सार्वजनिक आचरण के बारे में हो अथवा उसके या दूसरों के हित में अच्छे इरादे से की गयी हो अथवा लोगों की भलाई को ध्यान में रखते हुए उन्हें आगाह करने के लिए हो , तो इसे मानहानि नहीं माना जायेगा।
  • मानहानि के लिए कार्यवाही
    मानहानि के लिए आप आपराधिक मुकदमा चलाकर मानहानि करने वाले व्यक्तियों और उसमें शामिल होने वाले व्यक्तियों को न्यायालय से दंडित करवा सकते हैं । यदि मानहानि से किसी व्यक्ति की या उसके व्यवसाय की या दोनों को कोई वास्तविक हानि हुई है तो उसका हर्जाना प्राप्त करने के लिए दीवानी दावा न्यायालय में प्रतिवेदन प्रस्तुत कर हर्जाना प्राप्त किया जा सकता है ।
    मानहानि करने वाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए दस्तावेजों के साथ सक्षम क्षेत्राधिकारी के न्यायालय में लिखित शिकायत करनी होगी।
    न्यायालय शिकायत पेश करने वाले का बयान दर्ज करेगा, अगर आवश्यकता हुई तो उसके एक-दो साथियों के भी बयान दर्ज करेगा।
    इन बयानों के आधार पर यदि न्यायालय समझता है कि मुकदमा दर्ज करने का पर्याप्त आधार उपलब्ध है तो वह मुकदमा दर्ज कर अभियुक्तों को न्यायालय में उपस्थित होने के लिए समन जारी करेगा।
    आपराधिक मामले में जहां नाममात्र का न्यायालय शुल्क देना होता है । वहीं हर्जाने के दावे में जितना हर्जाना मांगा गया है , उसके 5 से 7.50 फीसदी के लगभग न्यायालय शुल्क देना पड़ता है । जिसकी दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है।
    मानहानि के मामले में वादी को केवल यह सिद्ध करना होता है कि टिप्पणी अपमानजनक थी और सार्वजनिक रुप से की गयी थी । उस यह सिद्ध करने की जरुरत नहीं है कि टिप्पणी झूठी थी।
    बचाव पक्ष को ही यह साबित करना होता है कि वादी के खिलाफ उसने जो टिप्पणी की थी, वह सही थी ।

No comments:

Post a Comment