Tuesday, October 4, 2016

कविता -2

कुछ ऐसे पिसे ज़रूरतों की चक्की में,
खुदको पीछे छोड़ आये.. अपनों की तरक्की में|
मुद्दत का थका हुआ था, तो आख लग गयी,
सारा मंज़र ही बदल गया.. एक झपकी में|
कुछ ऐसे पिसे ज़रूरतों की चक्की में…
रिश्ता धुंधला गया, वक़्त के कोहरे में,
खबर ए रुखसत निगल गए.. एक सिसकी में|
कुछ ऐसे पिसे ज़रूरतों की चक्की में…
जाने किस दाग से आह निकली है ‘वीर’,
कई नाम लिखे हैं मेरी इस हिचकी में|
खामोश ज़हन में कैद बेचैनी है,
हमने लबों पे मुस्कुराहट पहनी है|
मत करो ज़ाया अपने जज़्बात तुम,
तकलीफ मेरी मुझे ही सहनी है|
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जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये,
इन हाथों से अपना खेल तमाम मत कीजिये|
बेसबब नहीं होता.. कुछ भी यहाँ,
खुद से गद्दारी का ये काम मत कीजिये|
जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये|
डर्र हो या मोहब्बत हो किसी से,
अपनी शक्सियत को दुसरे का गुलाम मत कीजिये|
जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये|
खुदा ने बड़ी नेमतों से बख्शी है जिंदिगी,
अपनी रूह की सुनिये.. इसे हराम मत कीजिये|
जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये|
जूनून की हवा दीजिये अपने इरादों को,
और फिर एक लम्हे का भी आराम मत कीजिये|
जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये|
न दीजिये कभी उन मजबूरियों का हवाला,
अपने होसलों का नाम बदनाम मत कीजिये|
जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये|
संभाल कर रखिये अपने दर्द सीने में,
हमसे कहिये.. इन्हें चर्चा ए आम मत कीजिये|
जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये|
ऐसे जियो की आखरी सांस भी मुक्कमल हो,
आधे अधूरे से कोई भी काम मत कीजिये|
जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये|
खुद तक जाता ये सफ़र क़ायम रहे,
किसी मील के पत्थर को मकाम मत कीजिये|
जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये|
एक पल भी कज़ा (मौत) मोहलत नहीं देगी,
यूँ बरबाद अपने सुबह शाम मत कीजिये|
जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये|
आईने से बड़ा कोई मज़हब नहीं है,
चंद किताबों का इतना एहतराम मत कीजिये|
जिसकी इजाज़त दिल न दे.. वो काम मत कीजिये|
न जाने किस मोड़ पर फिर मुलाकात हो ‘वीर’,
किसी से भी आखरी सलाम मत कीजिये|
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ये खुदा तेरे बन्दों में इतनी रहमत रखना,
कुछ नहीं, पर इंसानियत बरक़रार रखना।
परिंदो से अमन की तलाश जारी रखना,
भाईचारें के कुछ एक दीपक जलाए रखना।
बिके ज़मीर किसीका,तो तेरा डर बनाये रखना,
हर दिल में एक तस्वीर, माँ की बसाये रखना।
नक़ाब हो चेहरे पे , पर रिश्ते गहरे रखना,
झूट के साये में, सच का डर जिन्दा रखना।
चलती है जिंदगी रुपयों से, रुपया जिंदगी से हावी न रखना,
बिकते जिस्म का दर्द हर दिल में गहरा रखना।

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