Saturday, October 1, 2016

सुण रै म्हारी सखी सहेली

सुण रै म्हारी सखी सहेली, किती सुखी है आ छोटी सी चिड़कली |
जद मन करै रुंख पै आवै, जद मन करै आकास में फुर सूं उड़ जावै |
सुण रै म्हारी सखी सहेली, आज्या चालां आपां भी उड़बा बाळपणा मै |
खावां खाटा-मीठा बोरया, अर काचर-मतिरा आज्या मौज मनावां कांकड़ मै |
आज्या घर बणावां माटी का, गळीयारा में खेलां चोपड़-पासा, तिबारा में |
लै खेलां लुख -मिचणी ओ रयुं तूं लुख्ज्या म्हूँ तनै हैरुं |
किती सुखी है आ छोटी सी चिड़कली.............
न तो ब्याह की चिंता, न ही सासरै आणों-जाणों अर न ही घुंघटो पड़े काढणों |
सुण रै म्हारी सखी सहेली, चाल बाळपणा नै देवां झालो,
आज्या हिंडोळा हिंडा सावण-तिजां मै, अर पूजां ईसर-गौर, गणगौरां मै |
लै आपां गुड्डी बणावां चिरमी-चिप्ल्या की, आज ओळयूं आई पाछी ,पेल्याँ की |

पीणों, पचणों, पैरणों, सरदी साथै आय |
खाणों, रैणों खेलणों,सीयालै सुख दाय ||

अर्थात: पानी,पचना और पहनना ये सर्दी के साथ आते है | साथ ही भोजन ,रहना और खेलना ये सब शीत ऋतू में ही सुखदायी होते है |

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