सुण रै म्हारी
सखी सहेली, किती सुखी है आ
छोटी सी चिड़कली |
जद मन करै रुंख
पै आवै, जद मन करै आकास
में फुर सूं उड़ जावै |
सुण रै म्हारी
सखी सहेली, आज्या चालां आपां
भी उड़बा बाळपणा मै |
खावां खाटा-मीठा
बोरया, अर काचर-मतिरा आज्या मौज मनावां
कांकड़ मै |
आज्या घर बणावां
माटी का, गळीयारा में खेलां चोपड़-पासा,
तिबारा में |
लै खेलां लुख
-मिचणी ओ रयुं तूं लुख्ज्या म्हूँ तनै हैरुं |
किती सुखी है आ
छोटी सी चिड़कली.............
न तो ब्याह की
चिंता, न ही सासरै आणों-जाणों अर न ही घुंघटो
पड़े काढणों |
सुण रै म्हारी
सखी सहेली, चाल बाळपणा नै
देवां झालो,
आज्या हिंडोळा
हिंडा सावण-तिजां मै, अर पूजां ईसर-गौर, गणगौरां मै |
लै आपां गुड्डी
बणावां चिरमी-चिप्ल्या की, आज ओळयूं आई पाछी ,पेल्याँ की |
पीणों, पचणों, पैरणों, सरदी साथै आय |
खाणों, रैणों खेलणों,सीयालै सुख दाय ||
अर्थात: पानी,पचना और पहनना ये सर्दी के साथ आते है | साथ ही भोजन ,रहना और खेलना ये सब
शीत ऋतू में ही सुखदायी होते है |
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