इस मनुष्य जीवन में परोपकार परहित और परसेवा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है तथा इन तीनों से बड़ा मनुष्य का कोई दूसरा धर्म नहीं होता है ।यहीं तीनों मनुष्य जीवन के मुख्य आधार भी होते हैं जिनके सहारे मनुष्य जीवन लक्ष्य हासिल कर सकता है ।तुलसीदास बाबा ने भी लिखा है कि परहित सरिस धर्म नहि भाई, पर पीड़ा सम।ईश्वर ने हमें मनुष्य जीवन ही परसेवा परोपकार व परहित करने के लिये दिया है ।इन्हीं तीनों को मानव धर्म भी कहा गया है ।मनुष्य इन्हीं तीनों को जब अपना धर्म मानने लगता है तो वह साधारण मानव से महामानव देवमानव बन जाता है ।यह तीनों चीजें मनुष्य को तब मिलती है जब वह ईश्वर को अपना परमपिता व सर्वशक्तिमान मान लेता है ।यह तीनों कार्य ईश्वर के माने गये हैं और मनुष्य जब इन्हीं तीनों कार्यों को अपने जीवन में अंगीकृत कर लेता है तो धरती का भगवान बन जाता है । मनुष्य जीवन में माता पिता और गुरु का सान्निध इन तीनों चीजों के लिये जरूरी होता है।इनके सानिध्य में जीवन जीने से मनुष्य जीवन धन्य हो जाता है और यह तीनों चीजें इन्हीं तीनों लोगों से संस्कार के रूप में आसानी से मिल जाती हैं ।मनुष्य जीवन में कोई भी कार्य करने से पहले गुरु माता पिता की राय लेना जरूरी होता है जो ऐसा नही करते हैं उसका कोई भी कार्य पूरा नहीं होता है । गुरू और माता पिता धरती के साक्षात ईश्वर होते है ,जो कार्य ईश्वर की देखरेख में होते है वह कभी असफल नहीं होते हैं ।आजकल कमाई की अंधी दौड़ में लोग इन तीनों से दूर भागते जा रहे हैं और रात दिन अपने हित अपनी सेवा अपने उपकार में लगे हुए हैं ।ऐसे लोग कमाई के चक्कर में अपने आपको अपने बाप को और अपनी औकात को भूलकर मंदान्ध हाथी हो जाते हैं ।उन्हें दूसरे की सेवा दूसरे का हित व दूसरे का उपकार करने में तौहीन लगती है।यह तीनों चीजें ईश्वर को बहुत प्रिय हैं और जिस मनुष्य के पास यह तीनों चीजें हैं वह ईश्वर को बहुत प्रिय होता है
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