Sunday, October 16, 2016

अपराधी कौन???

आज के लोकतंत्र में जनता चुनकर जन प्रतिनिधि भेजती है अपने एवं देश के कल्याण हेतु, लेकिन वे जन प्रतिनिधि खुद वहाँ जाकर जन कल्याण न करके अपने हित की बात करने लगते हैं। अपने सुख- सुविधा से सम्बन्धित कानून बनाते हैं।इतना ही नहीं बल्कि उस कानून का उल्लंघन भी करतें हैं। यहाँ तक कि कानून के रखवाले भी कानून का उल्लंघन करतें हैं। अगर वे बहुत बड़ा अपराध भी करतें हैं तो खुलेआम बाहर घूमते हैं यह आम जनता सरकार सब जानती हैं।और संयोग से अगर किसी पार्टी से हो गये तो धीरे -धीरे उनका अपराध भी समाप्त हो जाता है।पता नहीं हमारे देश का कानून सही है या कानून के अधीन रहनेवाले लोग सही है।
आज क्या हो रहा है पता नहीं पैसा कानून पर भारी है या कानून पैसा पर भारी है।एक गरीब जनता एक हत्या कर देता है और प्रूफ हो जाता है।तो हमारे देश में या तो उसे आजीवन कारावास या फांसी पर टाक दिया जाता है ,एक पैसे वाला वहीं गलती करता है या उससे भी बड़ा जधन्य अपराध भी करता है ।वो बाहर इतमीनान से घूमते फिरते रहते है और उसकी सजा फांसी और आजीवन कारावास के मुताबिक बहुत कम सजा दी जाती है।
इनको सजा देने वाले कौन है इनपर जांच कर धारा लगाने वाले कौन है ? एक आम आदमी आज के समय में पुलिस स्टेशन जाता है तो उसे डाटकर भगा दिया जाता है उसकी एफ आई आर दर्ज नहीं की जाती। वहीं दूसरी ओर देखें एक ओहदे वाले पैसे वाले अगर जातें हैं तो उन्हें बैठाकर जलपान कराया जाता है इतना ही नहीं बल्कि उनकी झूठी एफ आई आर दर्ज कर ली जाती है। और त्वरित कार्यवाही भी की जाती है। आखिर ऐसा क्यों??
जनता सरकार बनाती है सर्वजन हिताय के लिए, सरकार अपने यहा अलग-अलग विभाग बनायी है जनता की देख-रेख करने के लिए साथ में देश का विकास करने के लिए। लेकिन यहाँ जनता की कम और अपनी सुख-सुविधा ज्यादा ध्यान में रखा जाता है। यही वजह है लूट घसोट भ्रष्टाचार की जड़ जम गई पता नहीं इसकी शुरुआत उपर से या नीचे से है । कहा जाता है लोकतंत्र आजाद होने का प्रतीक है और इस आजाद भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं जो परतंत्रता महसूस कर रहे हैं, ही नहीं बल्कि गुलामी भरा जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हैं। कौन दोषी है?
जनता जन प्रतिनिधि बनाकर भेजती देश चलाने के लिए ये बैठकर कानून बनाते हैं पता नहीं संविधान की जानकारी है या नहीं।उसी कानून और नियम के तहत सरकार छोटे -छोटे कर्मचारी से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी तक बहाल करती है जनता की सेवा करने के लिए लेकिन ज्यादातर ये लोग रक्षा कम शोषण ज्यादा करते हैं। पता नहीं जनप्रतिनिधि जानते हैं या जानते हुए नजरअंदाज करते हैं।
अब यह बात सामने आती है कि जनता दोषी है या जनप्रतिनिधि या सरकार के द्वारा बहाल किये गए कर्मी, अगर हम एक तरफ देखें ,जनता को दोषी ठहराते हैं तो हमारी सरकार बरी हो जाती है। दूसरी तरफ देखें,जनता को दोष कैसे दें ,ये तो आम जनता है सिर्फ सरकार बनाना जानती हैं और उनके बनाई गई लिक पर चलना जानते हैं।इन्हें क्या पता कि उस रास्ते पर क्या है ये तो धैर्य और विश्वास पर किसी को चुनकर भेजते हैं। इन्हें क्या पता हमारे विश्वास का खून कर दिया जायेगा । और सरकार को हम दोष दें नहीं सकते क्योंकि उन्हें दोष देना या न देना कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सरकार के कर्मचारी सरकार के नेता अधिकारी अगर गलती करतें हैं, तो जो उसमें निम्नश्रेणी के होते हैं उन्हीं पर कार्रवाई होती है और लोग दोषी पाये जाने के बाद भी इतमीनान से चैन की निंद मारते हैं।
बड़े -बड़े नेता, बड़ी-बड़ी घटनाएं करके और बड़े-बड़े अधिकारी भ्रष्टाचार में संलिप्त होते हुए या तो बाहर घुम रहे हैं या नाम मात्र की सजा काटकर वापस सरकार के आदमी बन गये । एक बार मैं पढा था पेपर में किसी मीडिया के द्वारा सर्वे किया गया था लगभग ५०% लोकसभा राज्यसभा के सदस्यों के उपर किसी न किसी प्रकार का एफआईआर है और कोर्ट में लम्बीत है। उस समय के सरकार के द्वारा ये भी कहा गया था कि इन सभी लोगों पर कार्रवाई की जाएगी। शायद कानून बनाने वाले ही थे इसलिए कानून को ही बदल दिए तभी आजतक कुछ नहीं हुआ।यही अगर कोई सरकारी नौकरी में निम्न वर्गीय कर्मी होते या कोई गरीब आम जनता होती तो कितनों को कारावास से लेकर कई बरस तक सजा सुना दी गई होती ओर उसे उस पद से पदच्युत कर दिया जाता।
क्या माजरा है एक तरफ जनता सरकार को बनाती है सरकार जनता के लिए कार्य करने की सपथ लेती है और वह सपथ मात्र दिखावा होता है, छलवा होता है।तो यहाँ सरकार के लोग सरकार के अंग दोषी होते हैं। लेकिन दूसरे तरफ नजर डालते हैं सरकार बनाने के लिए जनता कुछ गलत लोगों का चयन कर उपर तक पहुंचा देती है। अपना फरिश्ता समझकर ,तो यहा जनता दोषी है। तीसरी तरफ कुछ लोग गरीब तबके के लोगों को डराकर धमका कर उनसे वोट जबरन लेकर खुद देश का नेता बनकर देशसेवा करने चलते हैं । ऐसे में नेता या गरीब जनता दोषी है। इस प्रकार से आज हमारे देश में अपराधी कौन है पता नहीं चलता है।अपराध कोई और करता सजा कोई और काटता है(ये सिर्फ अपना विचार है किसी पर आरोप- प्रत्यारोप नही।)
@रमेश कुमार सिंह /08-09-2016
*****************************************
पैसा – जीने के लिए ‘पैसा’ जरूरी है. ‘जीवन’ के लिए ‘प्यार’ जरूरी है, प्यार के बाद कुछ ‘पावर’ तो चाहिए ही और ‘पावर’ मिलते ही ‘प्रसिद्ध’ भी होना चाहते हैं. यह ‘प्रसिद्धि’ भी ‘परिस्थितयों’ पर बहुत हद तक निर्भर करता है. ‘पावर’ और ‘प्रसिद्धि’ के मार्ग में हम पाप-पुण्य का हिशाब नहीं करते! कौन क्या कर लेगा? कानून हमारी मुट्ठी में है, कभी-कभी यह दृष्टिगोचर भी होता है, कहीं-कहीं कानून अपना काम करता है, जहाँ कोई सामर्थ्यवान का सहारा नहीं होता. ‘सत्यमेव जयते’ जैसे वाक्य केवल शोभा बढ़ाते है हमारे धर्मग्रंथों का.
पैसा मतलब धन. धन जरूरी है रोटी के लिए, कपड़ा के लिए और मकान के लिए जो हर आदमी की मूल-भूत आवश्यकता होती है. अब मूल-भूत आवश्यकता में और भी चीजें जुड़ गयी हैं, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, संचार के माध्यम, परिवहन के तरीके, बिजली, पानी और सड़क. ये सब आवश्यकतायेँ बिना पैसे के पूरी नहीं हो सकती. पर पैसा आये कहाँ से ? पैसे के लिए मिहनत करनी होती है, कमाई करनी होती है. हमारा श्रम बिकता है. उसकी कीमत अलग-अलग खरीददार लगाते हैं, जो मांग और आपूर्ति के अनुसार बदलता रहता है. हम मजबूरी-वश कहीं-न-कहीं समझौता तो करते ही हैं. बिना समझौता के जीना मुश्किल है आज के माहौल में… नहीं?. अब यह समझौता कितना नैतिक और कितना अनैतिक होता है, कितना तर्क-संगत होता है, कितना लालच या मजबूरी-वश… अभी हम उस निर्णय तक नहीं पहुँच पाए हैं.
पैसा कमाने के लिए आपके पास ‘हुनर’ भी तो होना चाहिए ‘हुनर’ में प्राथमिक जरूरत है शिक्षा और निपुणता. इसके लिए भी पैसे की ही जरूरत होती है. सम्भवत: यह जरूरत हमारे माता-पिता/अभिभावक पूरा करते हैं. थोड़ी बहुत सरकार या स्वयं सेवी संस्थाएं भी मदद करती है. तब हम जाकर एक प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर पाते हैं. प्राथमिक शिक्षा के बाद ही कार्यकुशलता की जरूरत होती है, जिसे हम विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों के माध्यम से प्राप्त कर लेते हैं. कही पर सचमुच कार्यकुशलता हासिल होती है, तो कहीं कहीं पर उसका प्रमाण पत्र. आजकल प्रमाण-पत्र भी तो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. बस आपके पास पैसा होना चाहिए. यानी पैसे से सब कुछ नहीं तो बहुत कुछ खरीदा जा सकता है.
चलिए मान लिया आप किसी काम के लायक बन गए और आपको आपकी योग्यता के अनुसार काम भी मिल गया … अभी आपको खाने पहनने भर का ही पैसा मिलता है. घर किराये पर मिल जाता है, हैसियत के मुताबिक.
नौकरी या रोजगार में स्थापित होने के बाद आपको लोग चाहने लगते हैं, क्योंकि प्यार में पैसा है पैसे से प्यार है. आपको भी पैसे से प्यार होने लगता है. आप चाहते हैं ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना ताकि कुछ भविष्य के लिए बचा सकें, बैंक में जमा रकम में दायीं तरफ शून्य बढ़ा सकें. अपने घर वालों को कुछ मदद पहुंचा सकें, छोटों की आवश्यकता की पूर्ति कर सकें, क्योंकि आपको भी किसी ने यहाँ तक पहुँचाने में योगदान किया है. चलिए आप एक काम के आदमी बन गए. आपसे लोगों को प्यार होने लगा. अब आपको भी प्यार की जरूरत महसूस होगी. यह जरूरत शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की होती है.
अब आपकी जिंदगी में होगा किसी अनजाने का प्रवेश … बढ़ेगी धड़कन! आप साझा करना चाहेंगे अपने मन की बात को, भावना को, धड़कन को … कोई तो हो, जो आपको समझ सके. यानी आपकी अपनी गृहस्थी शुरू… तब आपके हाथ संकुचित होने लगेंगे और एक तरफ ज्यादा झुकने लगेंगे. यह सब स्वाभाविक प्रक्रिया है. पर परिवार के बाकी लोगों ने अभी आपसे आशाएं नहीं छोड़ी है. आपकी आवश्यकताएं बढ़ेंगी और आप अधिक मिहनत करना चाहेंगे ताकि आश्यकता की पूर्ति हो, चाहे आप एक हाथ से कमाएं या दोनों हाथों से. फिर आपको एक वाहन की आवश्यकता महसूस होगी उसके बाद एक घर की.
चलिए आप इस काबिल बन गए कि आपने एक वाहन भी खरीद लिया और मासिक किश्त के आधार पर एक घर भी खरीद ली. पर यहीं पर आपकी इच्छा का अंत नहीं होता आपको अब जरूरत महसूस होती है कि लोग आपको जाने यानी कि आपको प्रसिद्धि भी चाहिए. यह प्रसिद्धि ऐसे तो नहीं मिलती? जब तक आप किसी की मदद नहीं करेंगे, सामाजिक कार्यों में रूचि नहीं लेंगे, आपको कोई भी कैसे जानेगा? हो सकता है आप किसी सामाजिक संस्था से जुड़ जाएँ या खुद ही एक संस्था खोल लें और लोगों को जोड़ने शुरू कर दें. कहा भी है न परोपकाराय इदं शरीरं. यानी यह शरीर परोपकार के लिए ही बना है और परोपकार से बड़ा कोई दूसरा धर्म भी नहीं है. “परहित सरिस धरम नहीं भाई” – तुलसीदास ने भी तो यही कहा है न! चलिए आप परोपकारी बन गए. आपका लोग गुणगान करने लगे.
किसी की मदद के लिए भी तो चाहिए पैसा और पावर …पैसा और पावर दोनों का अद्भुत मिलान होता है. इसे रासायनिक बंधन भी कह सकते हैं. इस बंधन में जाने-अनजाने कई क्रिया और प्रतिक्रिया होती है. इस क्रिया प्रतिक्रिया में अवस्था और अवयवों को भूल जाते हैं, हमें मतलब होता है सिर्फ परिणाम से! परिणाम हमेशा ईच्छित नहीं भी होते है. तब हम चलते हैं विभिन्न प्रकार के चाल, करते हैं प्रयोग, कभी घृणा, ईर्ष्या, प्रतिद्वंद्विता और यह जल्द समाप्त नहीं होती. यह जीवन पर्यंत चलनेवाली प्रक्रिया का अभिन्न अंग है. और फिर याद आते हैं तुलसीदास … नही कोउ जग जन्मा अस नाही, प्रभुता पाई जाहि मद नाही…
और समरथ को नहीं दोष गोंसाई
कौन है जो मुझपर उंगली उठाएगा? यह अहम ही तो मनुष्य को खा जाता है, नहीं? अनेकों उदाहरण है. अहम को मारना आसान भी नहीं है. पैसा और पावर साथ हो तो मनुष्य सामर्थ्यवान हो ही जाता है. सामर्थ्यवान होने से अहम होना स्वाभाविक है नहीं तो तुलसीदास ऐसे ही थोड़े न लिखते! प्रभुता भाई जाहि मद नाही
ईर्ष्या भाव भी तो होता है हम मनुष्यों में, ईर्ष्या यानी जलन जो दूसरों के साथ स्वयं को भी जलाती है. प्रतिस्पर्धा अलग चीज है पर ईर्ष्या …यह औरों के साथ खुद को भी ले डूबती है.
एक और चीज है परिस्थिति हर आदमी परिस्थितियों का गुलाम होता है. परिस्थिति ही उसे अपनी उंगली पर नचाती है. कहते हैं न उनकी ईच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. परिस्थितयां ही आदमी को नायक बना देती है तो कभी खलनायक! परिस्थितियां किसी को मुख्य मंत्री बना देती है तो किसी को प्रधान मंत्री और कोई रह जाते हैं, प्रधान मंत्री पद के लिए प्रतीक्षारत! परिस्थितियां किसी को जेल के अन्दर डालकर रखती है तो कभी उसे बेल(BAIL) यानी जमानत देकर ‘बेल’(BELL) यानी घंटी बजाते हुए बाहर निकाल देती है. वही आदमी जो जेल के अन्दर bail का इंतज़ार कर रहा था, अब bail मिलने के बाद सहस्त्र bell (घंटी) के साथ जेल भिजवाने वाले पर हमला करने का मौका दे देती है. जो ब्यक्ति संगीन आरोपों के कारण जेल में दिन, महीने और साल गिन रहा था, आज जेल से बाहर निकलकर, हर कानून को ठोकर मारता हुआ, गर्व से शेर की तरह दहाड़ता हुआ, कानून को अपने शिकंजे के अन्दर कर लेता है. बल्कि उसके साथ हजारों लोग कानून की खिल्ली उड़ाते हुए जनता को यह बतलाता दिखता है – “कानून तुम जैसे कीड़े-मकोड़ों के लिए है हमारे लिए नहीं.” अब चाहे जो कह लो, सत्यमेव जयते या असत्यमेव जयते. न्याय देवी के माथे पर पट्टी बंधी है. वह देख नहीं सकती देखना भी नहीं चाहिए, नहीं तो बहुत दुख होता गांधारी की तरह! यही है हमारा देश, समाज, संसार और भवसागर! जय महाकाल! जय देवाधिदेव! शिवरूप कल्याण स्वरुप महादेव ..अपना त्रिनेत्र सम्हालकर रखिये बहुत जरूरत है उसकी ….उचित समय पर ही खोलियेगा. जय शिवशंकर! ॐ नम: शिवाय!
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

No comments:

Post a Comment