छंद : भाग-2 : मापनीमुक्त मात्रिक छंद
विशेषताएं :
(क) इन छंदों की लय को किसी मापनी में बाँधना संभव नहीं है l इन छंदों की लय को निर्धारित करने के लिए कलों ( द्विकल 2 मात्रा, त्रिकल 3 मात्रा, चौकल 4 मात्रा) का प्रयोग किया जाता है -
द्विकल = 2 या 11
त्रिकल = 21 या 12 या 111
चौकल = 22 या 211 या 112 या 121 या 1111
(ख) कलों के अतिरिक्त चरणों या पदों के आदि-अंत में किसी निश्चित मात्राक्रम की चर्चा भी की जाती है जिसमें प्रायः वाचिक भार ही प्रयुक्त होता है l
(ग) कभी-कभी कलों का प्रतिबन्ध पूरा होने पर भी लय बाधित हो जाती है अर्थात लय होने पर कलों का प्रतिबन्ध होना अनिवार्य है किन्तु कलों का प्रतिबन्ध होने पर लय का होना अनिवार्य नहीं है l
उदाहरण :
श्रीरा/म दिव्य/ रूप/ को , लंके/श गया/ जान l
4+4+3+2 , 4+4+3
चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल, चौकल+चौकल+त्रिकल
अर्थात इस पंक्ति में दोहा छंद के अनुसार कलों का प्रतिबन्ध पूरा है फिर भी यह पंक्ति दोहा छंद की लय में नहीं है l
यह पंक्ति दोहे की लय में इस प्रकार होगी --
दिव्य/रूप/ श्री/राम/ को, जान/ गया/ लं/केश l
3+3+2+3+2 , 3+3+2+3
(घ) मापनीमुक्त छंदों में लय ही सर्वोपरि है जो मुख्यतः अनुकरण से आती है l अस्तु रचनाकारों के लिए उचित है कि वह पहले किसी जाने-समझे छंद को सस्वर गाकर उसकी लय को मन में स्थापित करे , फिर उसी लय पर अपना छंद रचे और अंत में मात्राभार तथा नियमों की जांच कर लें l
(च) मापनीमुक्त मात्रिक छंद तीन प्रकार के होते हैं – 1) सम मात्रिक छंद जिनके सभी चरणों के मात्राभार और नियम सामान होते हैं जैसे चौपाई, रोला आदि 2) अर्धसम मात्रिक छंद जिनमें मात्राभार और नियम की दृष्टि से विषम चरण परस्पर एक सामान होते है और उनसे भिन्न सम चरण परस्पर एक सामान होते हैं जैसे दोहा, सोरठा, बरवै आदि तथा 3) विषम मात्रिक छंद जिनके चरणों के मात्राभार और नियम भिन्न होते हैं किन्तु अर्धसम मात्रिक नहीं होते हैं जैसे कुण्डलिया, कुण्डलिनी, छप्पय आदि l
कतिपय उदाहरण :
(1) हाकलि/मानव छंद [सम मात्रिक]
विधान - इसके प्रत्येक चरण में 14 मात्रा होती हैं , तीन चौकल के बाद एक द्विकल होता है (4+4+4+2) l यदि तीन चौकल अनिवार्य न हों तो यही छंद 'मानव' कहलाता है l
उदाहरण -
बने ब/हुत हैं/ पूजा/लय,
अब बन/वाओ/ शौचा/लय l
घर की/ लाज ब/चाना/ है,
शौचा/लय बन/वाना है l
- ओम नीरव
विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है -
22 22 22 2
गागा गागा गागा गा
फैलुन फैलुन फैलुन अल
किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l
(2) चौपई या जयकरी छंद [सम मात्रिक]
विधान – इसके प्रयेक चरण में 15 मात्रा होती हैं, अंत में 21 या गाल अनिवार्य होता है, कुल चार चरण होते हैं, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l
उदाहरण :
भोंपू लगा-लगा धनवान,
फोड़ रहे जनता के कान l
ध्वनि-ताण्डव का अत्याचार,
कैसा है यह धर्म-प्रचार l
- ओम नीरव
(3) चौपाई छंद [सम मात्रिक]
विधान – इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा होती हैं , अंत में 21 या गाल वर्जित होता है , कुल चार चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l
उदाहरण :
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना,
कर बिनु करै करम विधि नाना l
आनन रहित सकल रस भोगी,
बिनु बानी बकता बड़ जोगी l
- तुलसीदास
विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है -
22 22 22 22
गागा गागा गागा गागा
फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन
किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l
(4) पदपादाकुलक/राधेश्यामी/मत्तसवैया छंद [सम मात्रिक]
विधान – पदपादाकुलक छंद के एक चरण में 16 मात्रा होती हैं , आदि में द्विकल (2 या 11) अनिवार्य होता है किन्तु त्रिकल (21 या 12 या 111) वर्जित होता है, पहले द्विकल के बाद यदि त्रिकल आता है तो उसके बाद एक और त्रिकल आता है , कुल चार चरण होते हैं, क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त होते है l
राधेश्यामी या मत्त सवैया छंद के एक चरण में 32 मात्रा होती है और यह पदपादाकुलक का दो गुना होता है l अन्य लक्षण पूर्ववत हैं l
पदपादाकुलक का उदाहरण :
कविता में हो यदि भाव नहीं,
पढने में आता चाव नहीं l
हो शिल्प भाव का सम्मेलन,
तब काव्य बनेगा मनभावन l
- ओम नीरव
राधेश्यामी/मत्तसवैया का उदाहरण :
दो चरणों के जिस आसन पर, मैं शैशव में शी करता था,
शी-शी के स्वर से संचालित, दो दृग मैं निरखा करता था l
करता विलम्ब देतीं झिड़की, ले-ले मेरे शैशवी नाम,
तेरे उस युग-पद-आसन को, मन बार-बार करता प्रणाम l
- ओम नीरव
विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है -
22 22 22 22
गागा गागा गागा गागा
फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन
राधेश्यामी या मत्तसवैया छंद में यही मापनी दो गुनी समझी जा सकती है l
किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l
(5) श्रृंगार छंद (उपजाति सहित) [सम मात्रिक]
विधान – इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा होती हैं, आदि में क्रमागत त्रिकल-द्विकल (3+2) और अंत में क्रमागत द्विकल-त्रिकल (2+3) आते हैं, कुल चार चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l
उदाहरण :
भागना लिख मनुजा के भाग्य,
भागना क्या होता वैराग्य l
दास तुलसी हों चाहे बुद्ध,
आचरण है यह न्याय विरुद्ध l
- ओम नीरव
(6) राधिका छंद [सम मात्रिक]
विधान – इसके प्रत्येक चरण में 22 मात्रा होती हैं, 13,9 पर यति होती है, यति से पहले और बाद में त्रिकल आता है, कुल चार चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l
उदाहरण :
मन में रहता है काम , राम वाणी में,
है भारी मायाजाल, सभी प्राणी में l
लम्पट कपटी वाचाल, पा रहे आदर,
पुजता अधर्म है ओढ़, धर्म की चादर l
- ओम नीरव
(7) कुण्डल/उड़ियाना छंद [सम मात्रिक]
विधान – इसके प्रत्येक चरण में 22 मात्रा होती हैं, 12,10 पर यति होती है , यति से पहले और बाद में त्रिकल आता है औए अंत में 22 आता है l यदि अंत में एक ही गुरु 2 या गा आता है तो उसे उड़ियाना छंद कहते हैं l कुल चार चरण होते हैं, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l
कुण्डल का उदाहरण :
गहते जो अम्ब पाद, शब्द के पुजारी,
रचते हैं चारु छंद, रसमय सुखकारी l
देती है माँ प्रसाद, मुक्त हस्त ऐसा,
तुलसी रसखान सूर, पाये हैं जैसा l
- ओम नीरव
उड़ियाना का उदाहरण :
ठुमकि चालत रामचंद्र, बाजत पैंजनियाँ,
धाय मातु गोद लेत, दशरथ की रनियाँ l
तन-मन-धन वारि मंजु, बोलति बचनियाँ,
कमल बदन बोल मधुर, मंद सी’ हँसनियाँ l
- तुलसी दास
(8) रास छंद [सम मात्रिक]
विधान – 22 मात्रा, 8,8,6 पर यति, अंत में 112 , चार चरण , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
उदाहरण :
व्यस्त रहे जो, मस्त रहे वह, सत्य यही,
कुछ न करे जो, त्रस्त रहे वह, बात सही l
जो न समय का, मूल्य समझता, मूर्ख बड़ा,
सब जाते उस, पार मूर्ख इस, पार खड़ा l
(9) निश्चल छंद [सम मात्रिक]
विधान – 23 मात्रा, 16,7 पर यति, चरणान्त में 21 या गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
उदाहरण :
बीमारी में चाहे जितना, सह लो क्लेश,
पर रिश्ते-नाते में देना, मत सन्देश l
आकर बतियायें, इठलायें, निस्संकोच,
चैन लूट रोगी का, खायें, बोटी नोच l
- ओम नीरव
(10) रोला छंद [सम मात्रिक]
.
विधान – 24 मात्रा, 11,13 पर यति, यति से पहले वाचिक भार 21 या गाल (अपवाद स्वरुप 122 या लगागा भी) और यति के बाद वाचिक भार 12 लगा या 21 गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत l प्रत्येक चरण यति पर दो पदों में विभाजित हो जाता है l
पहले पद के कलों का क्रम निम्नवत होता है -
4+4+3 (चौकल+चौकल+त्रिकल) अथवा
3+3+2+3 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल)
दूसरे पद के कलों का क्रम निम्नवत होता है -
3+2+4+4(त्रिकल+द्विकल+चौकल+चौकल) अथवा
3+2+3+3+2 (त्रिकल+द्विकल+त्रिकल+त्रिकल+द्विकल)
उदाहरण :
नागफनी की बाग़ बनी हो जब अँगनाई,
घूमे लहू लुहान देश की ही तरुणाई l
फिर पाँवों में डाल चले जो कविता पायल,
बोलो मेरे मीत न हो कवि कैसे घायल l
- ओम नीरव
विशेष : दोहा के विषम और सम चरणों का क्रम परस्पर बदल देने से सोरठा छंद बनता है और उसकी प्रत्येक पंक्ति का मात्राक्रम 11,13 होता है किन्तु वह रोला का चरण नहीं हो सकता है जबकि रोला के चरण का मात्राभार भी 11,13 ही होता है ! कारण यह है की दोनों के लय भिन्न होती है l अस्तु रोला को दो सोरठा के समान समझ लेना नितांत भ्रामक है l
(11) रूपमाला/मदन छंद [सम मात्रिक]
विधान – 24 मात्रा, 14,10 पर यति, आदि और अंत में वाचिक भार 21 गाल l कुल चार चरण , क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत l
उदाहरण :
देह दलदल में फँसे हैं, साधना के पाँव,
दूर काफी दूर लगता, साँवरे का गाँव l
क्या उबारेंगे कि जिनके, दलदली आधार,
इसलिए आओ चलें इस, धुंध के उसपार l
- ओम नीरव
(12) मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक]
विधान – 25 मात्रा, 13,12 पर यति, यति से पहले वाचिक भार 12 या लगा, चरणान्त में वाचिक भार 22 या गागा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
विशेष – दोहा के क्रमागत दो चरणों के अंत में एक लघु बढ़ा देने से मुक्तामणि का एक चरण बनता है l
उदाहरण :
विनयशील संवाद में, भीतर बड़ा घमण्डी,
आज आदमी हो गया, बहुत बड़ा पाखण्डी l
मेरा क्या सब आपका, बोले जैसे त्यागी,
जले ईर्ष्या द्वेष में, बने बड़ा बैरागी l
- ओम नीरव
(13) गगनांगना छंद [सम मात्रिक]
विधान – 25 मात्रा, 16,9 पर यति, चरणान्त में 212 या गालगा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
उदाहरण :
कब आओगी फिर, आँगन की, तुलसी बूझती l
किस-किस को कैसे समझाऊँ, युक्ति न सूझती ll
अम्बर की बाहों में बदरी, प्रिय तुम क्यों नहीं l
भारी है जीवन की गठरी, प्रिय तुम क्यों नहीं ll
- ओम नीरव
(14) विष्णुपद छंद [सम मात्रिक]
विधान – 26 मात्रा, 16,10 पर यति, अंत में वाचिक भार 2 या गा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
उदाहरण :
अपने से नीचे की सेवा, तीर-पड़ोस बुरा,
पत्नी क्रोधमुखी यों बोले, ज्यों हर शब्द छुरा l
बेटा फिरे निठल्लू बेटी, खोये लाज फिरे,
जले आग बिन वह घरवाला, घर पर गाज गिरे l
- ओम नीरव
(15) शंकर छंद [सम मात्रिक]
विधान – 26 मात्रा, 16,10 पर यति, चरणान्त में 21 या गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत l
उदाहरण :
सुरभित फूलों से सम्मोहित, बावरे मत भूल l
इन फूलों के बीच छिपे हैं, घाव करते शूल ll
स्निग्ध छुअन या क्रूर चुभन हो, सभी से रख प्रीत l
आँसू पीकर मुस्काता चल, यही जग की रीत l
- ओम नीरव
(16) सरसी/कबीर/सुमंदर छंद [सम मात्रिक]
विधान – 27 मात्रा, 16,11 पर यति, चरणान्त में 21 लगा अनिवार्य l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
विशेष : चौपाई का कोई एक चरण और दोहा का सम चरण मिलाने से सरसी का एक चरण बन जाता है l
उदाहरण :
पहले लय से गान हुआ फिर, बना गान ही छंद,
गति-यति-लय में छंद प्रवाहित, देता उर आनंद l
जिसके उर लय-ताल बसी हो, गाये भर-भर तान,
उसको कोई क्या समझाये, पिंगल छंद विधान l
- ओम नीरव
(17) सार छंद [सम मात्रिक]
विधान – 28 मात्रा, 16,12 पर यति, अंत में वाचिक भार 22 गागा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
उदाहरण :
कितना सुन्दर कितना भोला, था वह बचपन न्यारा l
पल में हँसना पल में रोना, लगता कितना प्यारा l
अब जाने क्या हुआ हँसी के, भीतर रो लेते हैं l
रोते-रोते भीतर-भीतर, बाहर हँस देते हैं l
- ओम नीरव
विशेष : इस छंद की मापनी को इसप्रकार लिखा जाता है -
22 22 22 22, 22 22 22
गागा गागा गागा गागा, गागा गागा गागा
फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन, फैलुन फैलुन फैलुन
किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है l इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l
(18) लावणी/कुकुभ/ताटंक छंद [सम मात्रिक]
विधान – 30 मात्रा, 16,14 पर यति l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
विशेष – इसके चरणान्त में वर्णिक भार 222 या गागागा अनिवार्य होने पर ताटंक , 22 या गागा होने पर कुकुभ और कोई ऐसा प्रतिबन्ध न होने पर यह लावणी छंद कहलाता है l
उदाहरण :
तिनके-तिनके बीन-बीन जब, पर्ण कुटी बन पायेगी,
तो छल से कोई सूर्पणखा, आग लगाने आयेगी l
काम अनल चन्दन करने का, संयम बल रखना होगा,
सीता सी वामा चाहो तो, राम तुम्हें बनना होगा l
- ओम नीरव
विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है -
22 22 22 22, 22 22 22 2
गागा गागा गागा गागा, गागा गागा गागा गा
फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन, फैलुन फैलुन फैलुन अल
किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है l इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l
(19) बीर/आल्ह छंद [सम मात्रिक]
विधान – 31 मात्रा, 16,15 पर यति, चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत l
उदाहरण :
विनयशीलता बहुत दिखाते, लेकिन मन में भरा घमण्ड,
तनिक चोट जो लगे अहम् को, पल में हो जाते उद्दण्ड l
गुरुवर कहकर टाँग खींचते , देखे कितने ही वाचाल,
इसीलिये अब नया मंत्र यह, नेकी कर सीवर में डाल l
- ओम नीरव
(20) त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक]
विधान – 32 मात्रा, 10,8,8,6 पर यति, चरणान्त में 2 गा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l पहली तीन या दो यति पर आतंरिक तुकांत होने से छंद का लालित्य बढ़ जाता है l तुलसी दास जैसे महा कवि ने पहली दो यति पर आतंरिक तुकान्त का अनिवार्यतः प्रयोग किया है l
उदाहरण :
तम से उर डर-डर, खोज न दिनकर, खोज न चिर पथ, ओ राही,
रच दे नव दिनकर, नव किरणें भर, बना डगर नव, मन चाही l
सद्भाव भरा मन, ओज भरा तन, फिर काहे को, डरे भला,
चल-चल अकला चल, चल अकला चल, चल अकला चल, चल अकला l
- ओम नीरव
(21) दोहा छंद [अर्ध सम मात्रिक]
विधान – 13, 11, 13, 11 मात्रा के चार चरण, विषम चरणों के अंत में वाचिक भार 12 या 12 (अपवाद स्वरुप 12 2 या लगा गा भी), सम चरणों के अंत में 21 या गाल अनिवार्य, विषम चरणों के प्रारंभ में ‘मात्राक्रम 121 का स्वतंत्र शब्द’ वर्जित l कुल चार चरण, सम चरण तुकांत जबकि विषम चरण अतुकांत l
विशेष - (क) विषम चरणों के कलों का क्रम निम्नवत होता है -
4+4+3+2 (चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल)
3+3+2+3+2 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल+द्विकल)
सम चरणों के कलों का क्रम निम्नवत होता है -
4+4+3 (चौकल+चौकल+त्रिकल)
3+3+2+3 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल)
(ख़) उल्लेखनीय है कि लय होने पर कलों का प्रतिबन्ध अनिवार्य है किन्तु कलों का प्रतिबन्ध होने पर लय अनिवार्य नहीं है l जैसे -
श्रीरा/म दिव्य/ रूप/ को , लंके/श गया/ जान l
4+4+3+2, 4+4+3 अर्थात कलों का प्रतिबन्ध सटीक है फिर भी लय बाधित है l
(ग) कुछ लोग दोहे को दो ही पंक्तियों/पदों में लिखना अनिवार्य मानते हैं किन्तु यह कोरी रूढ़िवादिता है इसका छंद विधान से कोई सम्बन्ध नहीं है l दोहे के चार चरणों को चार पन्तियों में लिखने में कोई दोष नहीं है l
उदाहरण :
बड़ा हु/आ तो/ क्या हु/आ,
4+4+3+2,
जैसे/ पेड़ ख/जूर l
4+4+3
पंथी/ को छा/या न/हीं,
4+4+3+2,
फल ला/गे अति/ दूर l
4+4+3
(22) सोरठा छंद [अर्ध सम मात्रिक]
विधान – 11,13,11,13 मात्रा की चार चरण , सम चरणों के अंत में वाचिक भार 12 (अपवाद स्वरुप 12 2 भी), विषम चरणों के अंत में 21 अनिवार्य, सम चरणों के प्रारंभ में ‘मात्राक्रम 121 का स्वतंत्र शब्द’ वर्जित, विषम चरण तुकांत जबकि सम चरण अतुकांत l
विशेष – दोहा छंद के विषम और सम चरणों को परस्पर बदल देने से सोरठा छंद बन जाता है ! इसप्रकार अन्य लक्षण दोहा छंद के लक्षणों से समझे जा सकते हैं l
उदाहरण :
चरण बदल दें आप,
दोहा में यदि सम-विषम,
बदलें और न माप,
बने सोरठा छंद प्रिय l
- ओम नीरव
(23) कुण्डलिया छंद [विषम मात्रिक]
विधान – दोहा और रोला को मिलाने से कुण्डलिया छंद बनता है जबकि दोहा के चतुर्थ चरण से रोला का प्रारंभ होता हो (पुनरावृत्ति) तथा प्रारंभिक शब्द या शब्दों से ही छंद का समापन हो (पुनरागमन) l दोहा और रोला छंदों के लक्षण अलग से पूर्व वर्णित हैं l कुण्डलिया छंद में कुल छः चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l
कुण्डलिया = दोहा + रोला
विशेष :
(क) इस छंद के प्रथम दो चरणों के मात्राभार ( 13,11) और नियम एक जैसे हैं तथा उससे भिन्न अंतिम चार चरणों के मात्राभार (11,13) और नियम एक जैसे हैं l अस्तु यह छंद विषम मात्रिक है l
(ख़) दोहे के चतुर्थ चरण की रोला के प्रारंभ में पुनरावृत्ति सार्थक होनी चाहिए अर्थात दुहराया गया अंश दोनों चरणों में सार्थकता के साथ आना चाहिए l
(ग) चूँकि कुण्डलिया के अंत में वाचिक भार 22 आता है , इसलिए इसका प्रारंभ भी वाचिक भार 22 से ही होना चाहिए अन्यथा पुनरागमन दुरूह या असंभव हो जायेगा l
(घ) कथ्य का मुख्य भाग अंतिम चरणों में केन्द्रित होना चाहिए , तभी छंद अपना पूरा प्रभाव छोड़ता है l
उदाहरण :
माता कभी न माँगती, आँचल का प्रतिकार,
जननी करती पुत्र से, आँचल का व्यापार l
आँचल का व्यापार, चिता तक करती रहती,
गर्भ-दूध का क़र्ज़, चुकाने को नित कहती l
करे सुता से नेह, बहू से धन का नाता,
जो ले माँग दहेज़, नहीं वह माता माता l
- ओम नीरव
(24) कुण्डलिनी छंद [विषम मात्रिक ]
विधान - दोहा और अर्ध रोला को मिलाने से कुण्डलिनी छंद बनता है जबकि दोहा के चतुर्थ चरण से अर्ध रोला का प्रारंभ होता हो (पुनरावृत्ति) l इस छंद में यथारुचि प्रारंभिक शब्द या शब्दों से छंद का समापन किया जा सकता है (पुनरागमन), किन्तु यह अनिवार्य नहीं है l दोहा और रोला छंदों के लक्षण अलग से पूर्व वर्णित हैं l कुण्डलिनी छंद में कुल चार चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l
कुण्डलिया = दोहा + अर्धरोला
विशेष :
(क) इस छंद के प्रथम दो चरणों के मात्राभार ( 13,11) और नियम एक जैसे हैं तथा उससे भिन्न अंतिम दो चरणों के मात्राभार (11,13) और नियम एक जैसे हैं l अस्तु यह छंद विषम मात्रिक है l
(ख़) दोहे के चतुर्थ चरण की अर्धरोला के प्रारंभ में पुनरावृत्ति सार्थक होनी चाहिए अर्थात दुहराया गया अंश दोनों चरणों में सार्थकता के साथ आना चाहिए l
(ग) चूँकि कुण्डलिनी के अंत में वाचिक भार 22 या गागा आता है , इसलिए यदि पुनरागमन रखना है तो इसका प्रारंभ भी वाचिक भार 22 या गागा से ही होना चाहिए अन्यथा पुनरागमन दुरूह या असंभव हो जायेगा l
(घ) कथ्य का मुख्य भाग अंतिम चरणों में केन्द्रित होना चाहिए , तभी छंद अपना पूरा प्रभाव छोड़ पाता है l
(च) कुण्डलिनी लेखक द्वारा सृजित एक लौकिक छंद है , जिसमें परम्परागत कुण्डलिया छंद का सरलीकरण किया गया है और उसे अधिक व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया गया है l
उदाहरण :
जननी जनने से हुई, माँ ममता से मान,
जननी को ही माँ समझ, भूल न कर नादान l
भूल न कर नादान, देख जननी की करनी,
करनी से माँ बने, नहीं तो जननी जननी l
- ओम नीरव
(00) चौपाई आधारित छंद :
16 मात्रा के चौपाई छंद में कुछ मात्राएँ घटा-बढ़ाकर अनेक छंद बनते है l ऐसे चौपाई आधारित छंदों का चौपाई छंद से आतंरिक सम्बन्ध यहाँ पर दिया जा रहा है l इससे इन छंदों को समझने और स्मरण रखने में बहुत सुविधा रहेगी l
*चौपाई – 1 = 15 मात्रा का चौपई छंद, अंत 21
*चौपाई + 6 = 22 मात्रा का रास छंद, अंत 112
*चौपाई + 7 = 23 मात्रा का निश्चल छंद, अंत 21
*चौपाई + 9 = 25 मात्रा का गगनांगना छंद, अंत 212 X
*चौपाई + 10 = 26 मात्रा का शंकर छंद, अंत 21
*चौपाई + 10 = 26 मात्रा का विष्णुपद छंद, अंत 2
*चौपाई + 11 = 27 मात्रा का सरसी/कबीर छंद, अंत 21
*चौपाई + 12 = 28 मात्रा का सार छंद, अंत 22
*चौपाई + 14 = 30 मात्रा का ताटंक छंद, अंत 222
*चौपाई + 14 = 30 मात्रा का कुकुभ छंद, अंत 22
*चौपाई + 14 = 30 मात्रा का लावणी छंद, अंत स्वैच्छिक
*चौपाई + 15 = 31 मात्रा का बीर/आल्ह छंद, अंत 21
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