Friday, October 7, 2016

कविता संग्रह

घण्टे-घड़ियाल, ताल-खड़ताल लेके अब,
भारत माँ का कीर्तन-भजन होना चाहिए।
देश की सीमाओँ को बचाने के लिए तो आज,
तन-मन प्राण का हवन होना चाहिए।

शासकों को सीधी चाल चलने की जरूरत है,
तुष्टिकरण नीति का दमन होना चाहिए।
ईंट का जवाब अब देना होगा पत्थरों से,
बैरियों को कब्र में दफन होना चाहिए।

कोठी-बंगलों में ऐश बन्द होनी चाहिए,
सबके लिए मामूली भवन होना चाहिए।
रत्न-भूषण और श्री चाटुकारिता के चिह्न से,
मुक्त अपना प्यारा ये चमन होना चाहिए।

उग्रवादियों को सजा फाँसी की मिले तुरन्त,
अपने प्यारे देश में अमन होना चाहिए।
नेताओं की लाश को न झण्डे लपेटा जाये,
शहीदों का तिरंगा कफन होना चाहिए।

आजादी की जंग में जिन्होंने बलिदान दिया,
उन देशभक्तों का नमन होना चाहिए
जाति-धर्म, भाषा और भूषा की न होड़ लगे,

सबसे पहले अपना वतन होना चाहिए।
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निहित ज्ञान का पुंज है, गीता में श्रीमान।
पढ़ना इसको ध्यान से, इसमें है विज्ञान।१।
कर्म बनाता भाग्य को, यह जीवन-आधार।
कर्तव्यों के साथ में, मिल जाता अधिकार।२।
प्राणिमात्र कल्याण का, वेदों में सन्देश।
जीवन में धारण करो, ये अनुपम उपदेश।३।
करना है हमको सदा, ईश्वर पर विश्वास।
अन्धकार को चीर के, फैले धवल उजास।४।
अपने प्यारे देश का, आओ रक्खें मान।
जगद्गुरू बनकर पुनः, दुनिया को दें ज्ञान।५।
केवल कर्म प्रधान है, जीवन का आधार।
बैठे-ठाले कभी भी, मिले नहीं उपहार।६।
चन्दा, सूरज-धरा भी, चलते हैं दिन-रात।
जो देते जड़-जगत को, शीतल-सुखद प्रभात।७।
चलना ही है जिन्दगी, रुकना तो है मौत।
सूरज जग रौशन करे, टिम-टिम हों खद्योत।८।
तुलसी, सूर-कबीर की, मीठी-मीठी तान।
निर्गुण-सगुण उपासना, भूल गया इन्सान।९।
उपादान के मर्म को, समझाते हूँ आज।
धर्म और सत्कर्म से, सुधरे देश-समाज।१०।
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वो अनुगामी होगा कैसे?
जो सबके पथ का निर्माता।
ज्ञान-कर्म का मर्म बताता,
जीवन की भाषा समझाता।।

चन्दा में भी गरमी भर दे,
सूरज को भी शीतल कर दे,
जहाँ न पहुँचे रवि की किरणें,
लेकिन वो पल में हो आता।
ज्ञान-कर्म का मर्म बताता,
जीवन की भाषा समझाता।।

वही बहाता गंगा-सागर,
सबकी भरता खाली गागर.
वही सिखाता ढाई आखर,
वही प्यार को है उपजाता।
ज्ञान-कर्म का मर्म बताता,
जीवन की भाषा समझाता।।

सबका मालिक वो है एक,
लेकिन उसके नाम अनेक,
वो पूरी दुनिया पहचाने,
जग उसको पहचान न पाता।
ज्ञान-कर्म का मर्म बताता,
जीवन की भाषा समझाता।।

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