हिन्दी छन्द रचना के लिए छन्द शास्त्र की मूल बातों से परिचित होना आवश्यक है
छन्द वह नियम है जिसके अंतर्गत हम निश्चित मात्रा संख्या अथवा निश्चित मात्रा पुंज (गण) अथवा निश्चित वर्ण संख्या के आधार पर कोई काव्यात्मक रचना लिखते हैं
छन्द की परिभाषा
मात्रा, वर्ण की रचना, विराम गति का नियम और चरणान्त में समता जिस कविता में पाई जाते हैं उसे छन्द कहते हैं |
छन्द लिखने के लिए छन्द शास्त्री होना चाहिए, ऐसा आवश्यक नहीं है परन्तु छन्द की मूलभूत बातों तथा जिस छन्द विशेष में हम रचनारत हैं उसके मूल विधान से परिचित होना आवश्यक है
आईये शुरू से शुरू करते हैं
वर्ण
वर्ण दो प्रकार के होते हैं
१- हस्व वर्ण
२- दीर्घ वर्ण
१- हस्व वर्ण - हस्व वर्ण को लघु मात्रिक माना जाता है और इसे मात्रा गणना में १ मात्रा गिना जाता है तथा इसका चिन्ह "|" है|
२- दीर्घ वर्ण - दीर्घ वर्ण को घुरू मात्रिक माना जाता है और इसे मात्रा गणना में २ मात्रा गिना जाता है तथा इसका चिन्ह "S" है
मात्रा-
वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं जो समय हस्व वर्ण के उच्चारण में लगता है उसे एक मात्रिक मानते हैं इसका मानक हम "क" व्यंजन को मान सकते हैं क उच्चारण करने में जितना समय लगता है उस उच्चारण समय को हस्व मानना चाहिए| जब किसी वर्ण के उच्चारण में हस्व वर्ण के उच्चारण से दो गुना समय लगता है तो उसे दीर्घ वर्ण मानते हैं तथा दो मात्रिक गिनाते हैं जैसे - "आ" २ मात्रिक है
याद रखें -
स्वर = अ - अः
व्यंजन = क - ज्ञ
अक्षर = व्यंजन + स्वर
यदि हम स्वर तथा व्यंजन की मात्रा को जानें तो -
अ इ उ स्वर एक मात्रिक होते हैं
क - ह व्यंजन एक मात्रिक होते हैं
यदि क - ह तक किसी व्यंजन में इ, उ स्वर जुड जाये तो भी अक्षर १ मात्रिक ही रहते हैं
उदाहरण - कि कु १ मात्रिक हैं
अर्ध चंद्रकार बिंदी युक्त स्वर अथवा व्यंजन १ मात्रिक माने जाते हैं
कुछ शब्द देखें -
कल - ११
कमल - १११
कपि - ११
अचरज - ११११
अनवरत १११११
आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं अः स्वर दीर्घ मात्रिक हैं
यदि क - ह तक किसी व्यंजन में आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं अः स्वर जुड जाये तो भी अक्षर २ मात्रिक ही रहते हैं
उदाहरण - ज व्यंजन में स्वर जुडने पर - जा जी जू जे जै जो जौ जं जः २ मात्रिक हैं
अनुस्वार तथा विसर्ग युक्त स्वर तथा व्यंजन भी दीर्घ होते हैं
कुछ शब्द देखें -
का - २
काला - २२
बेचारा - २२२
अर्ध व्यंजन की मात्रा गणना
अर्ध व्यंजन को एक मात्रिक माना जाता है परन्तु यह स्वतंत्र लघु नहीं होता यदि अर्ध व्यंजन के पूर्व लघु मात्रिक अक्षर होता है तो उसके साथ जुड कर और दोनों मिल कर दीर्घ मात्रिक हो जाते हैं
उदाहरण - सत्य सत् - १+१ = २ य१ अर्थात सत्य = २१
इस प्रकार कर्म - २१, हत्या - २२, मृत्यु २१, अनुचित्य - ११२१,
यदि पूर्व का अक्षर दीर्घ मात्रिक है तो लघु की मात्रा लुप्त हो जाती है
आत्मा - आत् / मा २२
महात्मा - म / हात् / मा १२२
जब अर्ध व्यंजन शब्द के प्रारम्भ में आता है तो भी यही नियम पालन होता है अर्थात अर्ध व्यंजन की मात्रा लुप्त हो जाती हैं |
उदाहरण - स्नान - २१
एक ही शब्द में दोनों प्रकार देखें - धर्मात्मा - धर् / मात् / मा २२२
अपवाद - जहाँ अर्ध व्यंजन के पूर्व लघु मात्रिक अक्षर हो परन्तु उस पर अर्ध व्यंजन का भार न् पड़ रहा हो तो पूर्व का लघु मात्रिक वर्ण दीर्ग नहीं होता
उदाहरण - कन्हैया - १२२ में न् के पूर्व क है फिर भी यह दीर्घ नहीं होगा क्योकि उस पर न् का भार नहीं पड़ रहा है
संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं
उदाहरण = पत्र= २१, वक्र = २१, यक्ष = २१, कक्ष - २१, यज्ञ = २१, शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१
गोत्र = २१, मूत्र = २१,
यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं
उदाहरण = त्रिशूल = १२१, क्रमांक = १२१, क्षितिज = १२
संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं
उदाहरण = प्रज्ञा = २२ राजाज्ञा = २२२,
क्योकि यह लेख मूलभूत जानकारी साझा करने के लिए लिखा गया है इसलिए यह मात्रा गणना विधान अति संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है
अब कुछ शब्दों की मात्रा देखते हैं
छन्द - २१
विधान - १२१
तथा - १२
संयोग - २२१
निर्माण - २२१
सूत्र - २१
समझना - १११२
सहायक - १२११
चरण - १११
अथवा - ११२
अमरत्व - ११२१
गण
छन्द विधान में गुरु तथा लघु के संयोग से गण का निर्माण होता है | यह गण संख्या में कुल आठ हैं| गण का सूत्र इन्हें समझने में सहायक है
सूत्र - य मा ता रा ज भा न स ल गा
सूत्र सारिणी
१ -य - यगण - यमाता - १२२ - हमारा, दवाई
२ - मा - मगण - मातारा - २२२ - बादामी, बेचारा
३ - ता - तगण - ताराज - २२१ - जापान, आधार
४ - रा - रगण - राजभा - २१२ - आदमी, रोशनी
५ - ज - जगण - जभान - १२१ - जहाज, मकान
६ - भा - भगण - भानस - २११ - मानव, कातिल
७ - न - नगण - नसल - १११ - कमल, नयन
८ - स - सगण - सलगा - ११२ - सपना, चरखा
चरण तथा पद
प्रत्येक छन्द में चरण अथवा पद अथवा चरण+पद होते हैं
एक पंक्ति को पद तथा एक पद में यति/गति अर्थात विश्राम के आधार पर चरण होते हैं जैसे दोहा मात्रिक छन्द में देखें
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर
इस छन्द में दो पंक्ति अर्थात दो पद हैं |
बड़ा हुआ तो क्या हुआ / जैसे पेड़ खजूर
प्रत्येक पद में एक विश्राम है इसलिए प्रत्येक पद में दो चरण हैं
बड़ा हुआ तो क्या हुआ / जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं / फल लागे अति दूर
(कुल दो पद में कुल चार चरण हैं )
बड़ा हुआ तो क्या हुआ - प्रथम चरण
जैसे पेड़ खजूर - द्वितीय चरण
पंथी को छाया नहीं - त्तृतीय चरण
फल लागे अति दूर - चतुर्थ चरण
प्रथम तथा तृतीय चरण को विषम चरण कहते हैं
द्वितीय तथा चतुर्थ चरण को सम चरण कहते हैं
जिस छन्द के पंक्ति में विश्राम नहीं होता है उसमें चरण नहीं होते केवल पद होते हैं जैसे चौपाई छन्द में ४ पंक्ति अर्थात ४ पद होते हैं परन्तु पद को पढते समय पद के बीच में विश्राम नहीं लेते इसलिए इसके पदों में चरण नहीं होते
छन्द के प्रकार
मुख्यतः छन्द के दो प्रकार होते हैं
१- वर्णिक छन्द
२- मात्रिक छन्द
छन्द वह नियम है जिसके अंतर्गत हम निश्चित मात्रा संख्या अथवा निश्चित मात्रा पुंज (गण) अथवा निश्चित वर्ण संख्या के आधार पर कोई काव्यात्मक रचना लिखते हैं
छन्द की परिभाषा
मात्रा, वर्ण की रचना, विराम गति का नियम और चरणान्त में समता जिस कविता में पाई जाते हैं उसे छन्द कहते हैं |
छन्द लिखने के लिए छन्द शास्त्री होना चाहिए, ऐसा आवश्यक नहीं है परन्तु छन्द की मूलभूत बातों तथा जिस छन्द विशेष में हम रचनारत हैं उसके मूल विधान से परिचित होना आवश्यक है
आईये शुरू से शुरू करते हैं
वर्ण
वर्ण दो प्रकार के होते हैं
१- हस्व वर्ण
२- दीर्घ वर्ण
१- हस्व वर्ण - हस्व वर्ण को लघु मात्रिक माना जाता है और इसे मात्रा गणना में १ मात्रा गिना जाता है तथा इसका चिन्ह "|" है|
२- दीर्घ वर्ण - दीर्घ वर्ण को घुरू मात्रिक माना जाता है और इसे मात्रा गणना में २ मात्रा गिना जाता है तथा इसका चिन्ह "S" है
मात्रा-
वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं जो समय हस्व वर्ण के उच्चारण में लगता है उसे एक मात्रिक मानते हैं इसका मानक हम "क" व्यंजन को मान सकते हैं क उच्चारण करने में जितना समय लगता है उस उच्चारण समय को हस्व मानना चाहिए| जब किसी वर्ण के उच्चारण में हस्व वर्ण के उच्चारण से दो गुना समय लगता है तो उसे दीर्घ वर्ण मानते हैं तथा दो मात्रिक गिनाते हैं जैसे - "आ" २ मात्रिक है
याद रखें -
स्वर = अ - अः
व्यंजन = क - ज्ञ
अक्षर = व्यंजन + स्वर
यदि हम स्वर तथा व्यंजन की मात्रा को जानें तो -
अ इ उ स्वर एक मात्रिक होते हैं
क - ह व्यंजन एक मात्रिक होते हैं
यदि क - ह तक किसी व्यंजन में इ, उ स्वर जुड जाये तो भी अक्षर १ मात्रिक ही रहते हैं
उदाहरण - कि कु १ मात्रिक हैं
अर्ध चंद्रकार बिंदी युक्त स्वर अथवा व्यंजन १ मात्रिक माने जाते हैं
कुछ शब्द देखें -
कल - ११
कमल - १११
कपि - ११
अचरज - ११११
अनवरत १११११
आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं अः स्वर दीर्घ मात्रिक हैं
यदि क - ह तक किसी व्यंजन में आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं अः स्वर जुड जाये तो भी अक्षर २ मात्रिक ही रहते हैं
उदाहरण - ज व्यंजन में स्वर जुडने पर - जा जी जू जे जै जो जौ जं जः २ मात्रिक हैं
अनुस्वार तथा विसर्ग युक्त स्वर तथा व्यंजन भी दीर्घ होते हैं
कुछ शब्द देखें -
का - २
काला - २२
बेचारा - २२२
अर्ध व्यंजन की मात्रा गणना
अर्ध व्यंजन को एक मात्रिक माना जाता है परन्तु यह स्वतंत्र लघु नहीं होता यदि अर्ध व्यंजन के पूर्व लघु मात्रिक अक्षर होता है तो उसके साथ जुड कर और दोनों मिल कर दीर्घ मात्रिक हो जाते हैं
उदाहरण - सत्य सत् - १+१ = २ य१ अर्थात सत्य = २१
इस प्रकार कर्म - २१, हत्या - २२, मृत्यु २१, अनुचित्य - ११२१,
यदि पूर्व का अक्षर दीर्घ मात्रिक है तो लघु की मात्रा लुप्त हो जाती है
आत्मा - आत् / मा २२
महात्मा - म / हात् / मा १२२
जब अर्ध व्यंजन शब्द के प्रारम्भ में आता है तो भी यही नियम पालन होता है अर्थात अर्ध व्यंजन की मात्रा लुप्त हो जाती हैं |
उदाहरण - स्नान - २१
एक ही शब्द में दोनों प्रकार देखें - धर्मात्मा - धर् / मात् / मा २२२
अपवाद - जहाँ अर्ध व्यंजन के पूर्व लघु मात्रिक अक्षर हो परन्तु उस पर अर्ध व्यंजन का भार न् पड़ रहा हो तो पूर्व का लघु मात्रिक वर्ण दीर्ग नहीं होता
उदाहरण - कन्हैया - १२२ में न् के पूर्व क है फिर भी यह दीर्घ नहीं होगा क्योकि उस पर न् का भार नहीं पड़ रहा है
संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं
उदाहरण = पत्र= २१, वक्र = २१, यक्ष = २१, कक्ष - २१, यज्ञ = २१, शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१
गोत्र = २१, मूत्र = २१,
यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं
उदाहरण = त्रिशूल = १२१, क्रमांक = १२१, क्षितिज = १२
संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं
उदाहरण = प्रज्ञा = २२ राजाज्ञा = २२२,
क्योकि यह लेख मूलभूत जानकारी साझा करने के लिए लिखा गया है इसलिए यह मात्रा गणना विधान अति संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है
अब कुछ शब्दों की मात्रा देखते हैं
छन्द - २१
विधान - १२१
तथा - १२
संयोग - २२१
निर्माण - २२१
सूत्र - २१
समझना - १११२
सहायक - १२११
चरण - १११
अथवा - ११२
अमरत्व - ११२१
गण
छन्द विधान में गुरु तथा लघु के संयोग से गण का निर्माण होता है | यह गण संख्या में कुल आठ हैं| गण का सूत्र इन्हें समझने में सहायक है
सूत्र - य मा ता रा ज भा न स ल गा
सूत्र सारिणी
१ -य - यगण - यमाता - १२२ - हमारा, दवाई
२ - मा - मगण - मातारा - २२२ - बादामी, बेचारा
३ - ता - तगण - ताराज - २२१ - जापान, आधार
४ - रा - रगण - राजभा - २१२ - आदमी, रोशनी
५ - ज - जगण - जभान - १२१ - जहाज, मकान
६ - भा - भगण - भानस - २११ - मानव, कातिल
७ - न - नगण - नसल - १११ - कमल, नयन
८ - स - सगण - सलगा - ११२ - सपना, चरखा
चरण तथा पद
प्रत्येक छन्द में चरण अथवा पद अथवा चरण+पद होते हैं
एक पंक्ति को पद तथा एक पद में यति/गति अर्थात विश्राम के आधार पर चरण होते हैं जैसे दोहा मात्रिक छन्द में देखें
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर
इस छन्द में दो पंक्ति अर्थात दो पद हैं |
बड़ा हुआ तो क्या हुआ / जैसे पेड़ खजूर
प्रत्येक पद में एक विश्राम है इसलिए प्रत्येक पद में दो चरण हैं
बड़ा हुआ तो क्या हुआ / जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं / फल लागे अति दूर
(कुल दो पद में कुल चार चरण हैं )
बड़ा हुआ तो क्या हुआ - प्रथम चरण
जैसे पेड़ खजूर - द्वितीय चरण
पंथी को छाया नहीं - त्तृतीय चरण
फल लागे अति दूर - चतुर्थ चरण
प्रथम तथा तृतीय चरण को विषम चरण कहते हैं
द्वितीय तथा चतुर्थ चरण को सम चरण कहते हैं
जिस छन्द के पंक्ति में विश्राम नहीं होता है उसमें चरण नहीं होते केवल पद होते हैं जैसे चौपाई छन्द में ४ पंक्ति अर्थात ४ पद होते हैं परन्तु पद को पढते समय पद के बीच में विश्राम नहीं लेते इसलिए इसके पदों में चरण नहीं होते
छन्द के प्रकार
मुख्यतः छन्द के दो प्रकार होते हैं
१- वर्णिक छन्द
२- मात्रिक छन्द
१ - वर्णिक छन्द - जैसा कि आपने जाना गण आठ प्रकार के होते हैं
जब हम किसी गण को क्रम अनुसार रखते हैं तो एक वर्ण वृत्त का निर्माण होता है
जैसे - रगण, रगण, रगण, रगण तो इसकी मात्रा होती है - २१२, २१२, २१२, २१२
इस मात्रा क्रम के अनुसार जब हम कोई काव्य रचना लिखते हैं तो उस रचना को वर्णिक छन्द कहा जायेगा
उदाहरण - भुजंगप्रयात छन्द - का विधान देखें - यगण यगण यगण यगण अर्थात -
१२२ १२२ १२२ १२२
अरी व्यर्थ है व्यंजनों की लड़ाई
हटा थाल तू क्यों इसे आप लाई
वही पाक है जो बिना भूख आवे
बता किन्तु तू ही उसे कौन खावे - (साकेत)
मात्रा गणना
अरी व्य / र्थ है व्यं / जनों की / लड़ाई
हटा था / ल तू क्यों / इसे आ / प लाई
वही पा / क है जो / बिना भू / ख आवे
बता किन् / तु तू ही / उसे कौ / न खावे
(वर्णिक छन्द के कई भेद होते हैं )
२ मात्रिक छन्द -
जिस छन्द में गण क्रम नहीं होता बल्कि वर्ण संख्या आधार पर पद तथा चरण में कुल मात्रा का योग ही समान रखा जाता है उसे मात्रिक छन्द कहते हैं
उदाहरण - चौपाई छन्द - विधान - ४ पद, प्रत्येक पद में १६ मात्रा
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपीस तिहुं लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवन सुत नामा
मात्रा गणना
ज१ य१ ह१ नु१ मा२ न१ ज्ञा२ न१ गु१ न१ सा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
ज१ य१ क१ पी२ स१ ति१ हुं१ लो२ क१ उ१ जा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
रा२ म१ दू२ त१ अ१ तु१ लि१ त१ ब१ ल१ धा२ मा२ = १६ मात्रा
अं२ ज१ नि१ पु२ त्र१ प१ व१ न१ सु१ त१ ना२ मा२ = १६ मात्रा
(मात्रिक छन्द के कई भेद होते हैं)
छन्द मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं
१- वर्णिक छन्द
२- मात्रिक छन्द
तथा इनका परिचय भी प्रस्तुत किय गया अब छन्द के भेद के साथ उप भेद को भी जानेंगे
जैसा कि आपने जाना प्रत्येक पंक्ति को पद कहते हैं पद में यति/गति अर्थात विश्राम के आधार पर के आधार पर चरण का निर्माण होता है यति/गति अर्थात विश्राम न होने पर चरण नहीं बनता है
जैसे चौपाई में चार पद होते हैं तथा पदों में विश्राम नहीं होता इसलिए पद में चरण का निर्माण नहीं होता है
दो पंक्ति को द्विपदी कहते हैं
चार पंक्ति को चतुष्पदी कहते हैं
मुख्यतः छन्द के दो भेद १ - वर्णिक छन्द तथा २- मात्रिक छन्द के तीन तीन उप भेद होते हैं
मात्रिक छन्द के उप भेद
जैसा कि आपने जाना प्रत्येक पंक्ति को पद कहते हैं पद में यति/गति अर्थात विश्राम के आधार पर के आधार पर चरण का निर्माण होता है यति/गति अर्थात विश्राम न होने पर चरण नहीं बनता है
जैसे चौपाई में चार पद होते हैं तथा पदों में विश्राम नहीं होता इसलिए पद में चरण का निर्माण नहीं होता है
दो पंक्ति को द्विपदी कहते हैं
चार पंक्ति को चतुष्पदी कहते हैं
मुख्यतः छन्द के दो भेद १ - वर्णिक छन्द तथा २- मात्रिक छन्द के तीन तीन उप भेद होते हैं
मात्रिक छन्द के उप भेद
क) - सम मात्रिक छन्द
ख) - अर्ध सम मात्रिक छन्द
ग) - विषम मात्रिक छन्द
क) - सम मात्रिक छन्द - जिस द्विपदी के चरों चरण की मात्राएँ समान होती हैं अथवा जिस चतुष्पदी के चारो पद की कुल मात्राएं सामान होती हैं उन्हें सम मात्रिक छन्द कहते हैं
ऐसे चतुष्पदी का प्रचिलित उदाहरण चौपाई छन्द है जिसके चारो पद में १६ - १६ मात्राएं होती है|
विधान - ४ पद, प्रत्येक पद में १६ मात्रा
उदाहरण -
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपीस तिहुं लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवन सुत नामा
मात्रा गणनाज१ य१ ह१ नु१ मा२ न१ ज्ञा२ न१ गु१ न१ सा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
ज१ य१ क१ पी२ स१ ति१ हुं१ लो२ क१ उ१ जा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
रा२ म१ दू२ त१ अ१ तु१ लि१ त१ ब१ ल१ धा२ मा२ = १६ मात्रा
अं२ ज१ नि१ पु२ त्र१ प१ व१ न१ सु१ त१ ना२ मा२ = १६ मात्रा
चतुष्पदी का एक और उदाहरण कज्जल छन्द है जिसके चारो पद में १४ - १४ मात्राएं होती है, अंत गुरु लघु से होता है |
उदाहरण -
प्रभु मम ओरी देख लेव | = १४ मात्रा
तुम सम नाहीं और देव | = १४ मात्रा
कास प्रभु कीजै तोरि सेव | = १४ मात्रा
ताव न् कोऊ तोर भेव | = १४ मात्रा
द्विपदी का प्रचिलित उदाहरण विधाता छन्द है जिसके चारो चरण में १४ - १४ मात्राएं होती हैं
सम मात्रिक छन्द के दो उप भेद हैं
१ - साधारण सम मात्रिक छन्द
२- दंडक सम मात्रिक छन्द
१ - साधारण सम मात्रिक छन्द - मात्रिक छन्द के अन्तर्गत प्रत्येक चरण अथवा प्रत्येक पद में मात्रा ३२ तक हो तो उसे साधारण सम मात्रिक छन्द कहते हैं
कुछ प्रचिलित छन्द -
उल्लाला छन्द (द्विपदी) प्रत्येक चरण १३ मात्रा
चौपाई छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद १६ मात्रा
सुमेरू छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद १९ मात्रा
हरिगीतिका छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद २८ मात्रा
ख) - अर्ध सम मात्रिक छन्द
ग) - विषम मात्रिक छन्द
क) - सम मात्रिक छन्द - जिस द्विपदी के चरों चरण की मात्राएँ समान होती हैं अथवा जिस चतुष्पदी के चारो पद की कुल मात्राएं सामान होती हैं उन्हें सम मात्रिक छन्द कहते हैं
ऐसे चतुष्पदी का प्रचिलित उदाहरण चौपाई छन्द है जिसके चारो पद में १६ - १६ मात्राएं होती है|
विधान - ४ पद, प्रत्येक पद में १६ मात्रा
उदाहरण -
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर
जय कपीस तिहुं लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवन सुत नामा
मात्रा गणनाज१ य१ ह१ नु१ मा२ न१ ज्ञा२ न१ गु१ न१ सा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
ज१ य१ क१ पी२ स१ ति१ हुं१ लो२ क१ उ१ जा२ ग१ र१ = १६ मात्रा
रा२ म१ दू२ त१ अ१ तु१ लि१ त१ ब१ ल१ धा२ मा२ = १६ मात्रा
अं२ ज१ नि१ पु२ त्र१ प१ व१ न१ सु१ त१ ना२ मा२ = १६ मात्रा
चतुष्पदी का एक और उदाहरण कज्जल छन्द है जिसके चारो पद में १४ - १४ मात्राएं होती है, अंत गुरु लघु से होता है |
उदाहरण -
प्रभु मम ओरी देख लेव | = १४ मात्रा
तुम सम नाहीं और देव | = १४ मात्रा
कास प्रभु कीजै तोरि सेव | = १४ मात्रा
ताव न् कोऊ तोर भेव | = १४ मात्रा
द्विपदी का प्रचिलित उदाहरण विधाता छन्द है जिसके चारो चरण में १४ - १४ मात्राएं होती हैं
सम मात्रिक छन्द के दो उप भेद हैं
१ - साधारण सम मात्रिक छन्द
२- दंडक सम मात्रिक छन्द
१ - साधारण सम मात्रिक छन्द - मात्रिक छन्द के अन्तर्गत प्रत्येक चरण अथवा प्रत्येक पद में मात्रा ३२ तक हो तो उसे साधारण सम मात्रिक छन्द कहते हैं
कुछ प्रचिलित छन्द -
उल्लाला छन्द (द्विपदी) प्रत्येक चरण १३ मात्रा
चौपाई छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद १६ मात्रा
सुमेरू छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद १९ मात्रा
हरिगीतिका छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद २८ मात्रा
२- दंडक सम मात्रिक छन्द - मात्रिक छन्द के अन्तर्गत प्रत्येक चरण अथवा प्रत्येक पद में मात्रा ३२ से अधिक हो तो उसे दंडक सम मात्रिक छन्द कहते हैं
उदाहरण
हरिप्रिया छन्द (चतुष्पदी) प्रत्येक पद ४६ मात्रा
हरिप्रिया छन्द उदाहरण -
सोहाने कृपानिधान, देव देव राम चन्द्र भूमि पुत्रिका समेत देव चित्त मोहैं
मानो सुरतरुसमेत, कल्प बेलि छबि निकेत, शोभा श्रृंगार किधौं रोप धरैं सोहैं
लक्ष्मीपति लक्ष्मीयुत देवीयुत ईश किधौं छायायुत परम ईश चारु वेश राखैं
वन्दैन् जग मात तात, चरण युगल, नीरजात जाको सुर सिद्ध विध मुनिजन अभि लाखैं
ख)- अर्ध सम मात्रिक छन्द - जिस मात्रिक छन्द के द्विपदी में विषम चरम तथा सम चरण की मात्रा अलग अलग होती है अथवा चतुष्पदी में विषम पद तथा सम पद की मात्रा अलग अलग होती है उसे अर्ध सम मात्रिक छन्द कहते हैं
उदाहरण -
दोहा छन्द में विषम चरण १३ मात्रा तथा सम चरण ११ मात्रा का होता है अतः दोहा अर्ध सम मात्रिक छन्द है
अन्य अर्ध सम मात्रिक छन्द देखें -
सोरठा - (द्विपदी) = विषम चरण - ११ मात्रा / सम चरण - १३ मात्रा
उल्लाल - (चतुष्पदी) = विषम पद - १५ मात्रा / सम पद - १३ मात्रा
बरवै - (द्विपदी) = विषम चरण - १२ मात्रा / सम चरण - ७ मात्रा
ग) - विषम मात्रिक छन्द - जिस मात्रिक छन्द के द्विपदी में चारों चरण अथवा चतुष्पदी में चारो पद की मात्रा अलग अलग होती है उसे विषम मात्रिक छन्द कहते हैं
उदाहरण -
सिंहनी छन्द -(द्विपदी)
प्रथम चरण - १२ मात्रा
द्वितीय चरण - २० मात्रा
तृतीय चरण - १२ मात्रा
चतुर्थ चरण - १८ मात्रा
दो छन्दों के योग से निर्मित छन्द भी विषम मात्रिक छन्द कहलाते हैं
जैसे -
एक दोहा + एक रोला = कुंडलिया छन्द
एक रोला + एक उल्लाला = छप्पय छन्द
No comments:
Post a Comment